Kitna sona chahiye? -सोने का समय: विभिन्न आयु वर्ग के लिए

सोने का समय: विभिन्न आयु वर्ग के लिए


 मनुष्य को एक स्वस्थ व सुंदर जीवन जीने के लिए तन पर वसन, सर पर छत व थाली में आहार चाहिए, अब तक हम इन्हीं मूलभूत ज़रूरतों को जीवनरूपी वाहन के पहियों के रूप में देखा करते थे। निश्चित ही ये जीवन की आधारशिला बनाते हैं परन्तु आजकल फैली हुई सर्वव्यापी महामारी ने हमें यह सोचने पर विवश कर दिया है कि इन तीनों के अलावा और कौन सी छोटी-बड़ी आदतें या ज़रूरतें हैं जिनका समागम हमारी रोज़मर्रा की जिंदगी में होना चाहिए। 

'नींद' एक ऐसा शब्द जिससे हम सब अवगत हैं और निश्चित ही कर्णपटल पर इसके पड़ते ही हमें अत्यंत सुख की अनुभूति भी होती है। पर प्रश्न यह उठता है कि क्या इसके महत्व से हम परिचित हैं? क्या चिंता व अनिश्चितता से लबरेज़ इस जीवन में नींद की पर्याप्त मात्रा हम अपने लिए सुनिश्चित कर पा रहे हैं? आश्चर्यजनक तथ्य यह भी है कि हर आयु वर्ग की नींद को लेकर एक खास ज़रूरत होती है, जिसका ज्ञान हमें शायद ही हो पाता है।





 आजकल रात की प्रचुर व नियमित नींद दुर्लभ बनती जा रही क्यूँकि हमारी जीवनशैली में मोबाइल फोन, लैपटॉप आदि उपकरणों ने पैठ बना ली है। कामकाज़ी लोग 'वर्कलोड' के प्रभाव से अक्सर नींद की बलि चढ़ा देते हैं। शायद इसीलिए कहा गया है:-

' देर रात तक जागना, रोगों का है जंजाल

अपच, आंख के रोग संग तन भी रहे निढाल!'


नींद की उपयोगिता:-


  एक थके मांदे व्यक्ति को नींद से प्रिय कुछ भी प्रतीत नहीं होता है। सुकून भरी नींद तो किसी उपहार से कम नहीं। यह हमारी कार्यक्षमता में मानो नव ऊर्जा का संचार करती है। थकान, एकाग्रता की कमी,कमज़ोरी, उच्च रक्तचाप, मोटापा, चिड़चिड़ापन, याद्दाश्त का कमज़ोर होना आदि समस्याओं का सामना नींद के अभाव से उत्पन्न होना संभव है। 

शोधकर्ताओं के अनुसार, कम सोना वजन संबंधी परेशानियों का परिचायक हो सकता है। रोगों से लड़नेवाली कोशिकाएं अच्छी नींद के कारण सही तरीके से काम कर पाती हैं। रोगक्षम तंत्र को मजबूत करने के लिए नींद को एक उन्नत निर्माण क्रिया विषयक स्थिति के तौर पर देखा जाना चाहिए।


प्राचीन ग्रंथों व शास्त्रों में नींद पर प्रकाश :-

प्राचीन ग्रंथों के अनुसार एक अच्छी व नियमित नींद संबंधी शैली किसी ओखद से कम नहीं। इसीलिए योग आदि करने की भी सलाह दी गई है जिससे गहरी नींद आ सके।


 रात की नींद है कितनी ज़रूरी?


मानसिक स्थिति को दुरुस्त रखने के लिए रात की नींद अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। विशेषज्ञों के अनुसार, 'नाईट ड्यूटी' करनेवालों को मानसिक स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों का खतरा अधिक रहता है। रात को नींद लेने से मेडीटोनल हार्मोन उत्पन्न होता है जिससे सुबह ताजगी का अनुभव होता है। आमतौर पर चिकित्सक नींद की गोली बिन सलाह के लेने के पक्ष में नहीं होते। एक नियमित शैली से प्राकृतिक तरीके से आई हुई नींद किसी औषधि से कम नहीं।


दोपहर की नींद:-


रात को अगर नींद पूरी हो रही तो दिन की नींद का कोई महत्व नहीं। जब आपने अधूरी नींद रात को ली हो तब दोपहर में उसको पूरा कर किया जा सकता है।


विभिन्न वर्गों के लिए नींद की उपयोगिता:-


1.महिलाओं के लिए नींद 

 महिलाओं से जुड़ी बहुत भ्रांतियाँ समाज में फैली हुईं हैं। कुछ अनकहे रिवाज़ उन्हें सदियों से निभाने पड़ते हैं। उनमें से एक है सूरज की किरणों को चुनौती देकर घर में सबसे पहले उठना और गृहस्थी का कामकाज देखना। स्लीप फाउंडेशन के अनुसार महिलाओं को पर्याप्त नींद नहीं मिल पाती है। लंबी उम्र व स्वास्थ्य के लिए नींद में कोताही बरतना उचित नहीं। 


उम्र के अनुसार नींद की ज़रूरत:


5 से 16 साल की उम्र-

यह वो उम्र है जब महिलाओं का महत्वपूर्ण  शारीरिक विकास होता है। कम से कम 8 घंटों की नींद ज़रूरी होती है। देखा जाए तो देर रात मोबाइल, इंटरनेट आदि का प्रयोग इस आयु वर्ग की नींद को प्रभावित कर रहा है। शारीरिक विकास पर इसका दुष्प्रभाव सर्वविदित है।


25 साल तक की उम्र-

इस आयु वर्ग में घरेलू व घर से बाहर काम कर रही महिलाओं की बड़ी तादाद है। इन्हें 7-9 घंटों की नींद अपने लिए सुनिश्चित करनी चाहिए। 


25 वर्षों से अधिक उम्र-

ऐसी उम्र में शारीरिक विकास हो चुका होता है। जिम्मेदारियों से घिरी महिलाओं को कम से कम 7 घंटों की नींद लेनी चाहिए। कम नींद मानसिक तनाव व मोटापे को जन्म देती है। अगर रात को नींद न आए तो चिकित्सक से परामर्श अवश्य लेना चाहिए।


2. शिशुओं के लिए नींद 

 नए माता-पिता यह जानने को उत्सुक रहते हैं कि शिशु पर्याप्त नींद ले रहा है कि नहीं। अमूमन नवजात शिशु सोलह घंटों से अधिक (दिन-रात मिला कर) नींद लेता है। यह सालभर के बच्चों के लिए घट कर 13 घंटों के आसपास हो जाती है। शिशुओं की नींद की शैली में काफी उतार-चढ़ाव आता है। शारीरिक विकास जैसे पलटना, दांत निकलना, चलना आदि भी शिशुओं की नींद का निर्देशन करते हैं। वैसे रात के नौ बजे तक उन्हें सुला देना सुचारू दिनचर्या को निश्चित करने में कारगर है।


3. 10 वर्ष तक के बच्चों की नींद 


ऐसी अवस्था में बच्चे खेलकूद व पढ़ाई दोनों में हिस्सा लेते हैं। सक्रियता उनके मन और शरीर दोनों को थकाती है। अतः कम से कम 10 घंटों की नींद उनके लिए फायदेमंद है। 

अच्छी नींद लेनेवाले बच्चों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है। 'नर्वस' सिस्टम (तन्त्रिका तंत्र) के विकास हेतु भी एक अच्छी नींद महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।


4. 26-64 वर्ष के वयस्क की नींद 

इस वर्ग में आनेवाले वयस्कों 7-8घंटो की नींद लेनी चाहिए। 4 घंटों से कम सोना सेहत के लिए खतरनाक हो सकता है। नींद की अनियमितता ह्रदय संबंधी बीमारियों को बढ़ावा देती है। शोधकर्ताओं की माने तो यह बीमारियां असमय मौत को भी बुलाती हैं। इंटरनेशनल जर्नल आॅफ कार्डियोलाॅजी में इसका उल्लेख मिलता है।


5. बुजुर्गों के लिए नींद 

लगभग एक चौथाई बुजुर्ग नींद न आने की परेशानी से जुझते हैं जिससे उनके स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव भी पड़ सकता है। पर कहा जाता है बढ़ती उम्र के साथ नींद की ज़रूरत भी घटती जाती है। कभी-कभी नींद के लिए दवा का प्रयोग बढ़ती उम्र में देखा जाता है। परन्तु  इसके लिए उचित परामर्श तथा मार्गदर्शन लेने की सलाह दी जाती है ताकि कोई अनावश्यक या बुरा प्रभाव न हो।


अच्छी नींद के लिए किय जानेवाले उपाय:-


1. व्यायाम को रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल करें। पर हाँ, सोने के तुरंत पहले व्यायाम की सलाह अमूमन नहीं दी जाती है। प्राणायाम, वज्रासन, दंडासन,पर्वतासन आदि योग मुद्राओं से भी एक अच्छी नींद सुनिश्चित की जा सकती है।


2. रात्रि का भोजन सोने के 3-4 घंटे पहले ही कर लें। सीने या पेट में जलन की समस्या इससे नहीं होती और नींद में को अवरोध न होगा।


3. गुनगुने पानी से स्नान कर के सोने से अच्छी नींद आती है। इससे शरीर का तापमान कम होता है।


4.सोने से पहले कुछ पढ़ने की आदत करना लाभकारी है। मोबाइल, लैपटॉप,टीवी आदि का प्रयोग अच्छी नींद में बाधा उत्पन्न करता है।


एक अच्छी नींद किसी वरदान से कम नहीं। इसके महत्व को समझना हमारे लिए अत्यंत आवश्यक है। हमारा शरीर हमारी अवस्था के अनुसार निंद्रा ढ़ूँढ़ता है। जैसे शिशुओं व वृद्धों की ज़रूरत में फर्क मिलेगा। यह हमारा कर्तव्य है कि हम अपने शरीर को पोषक तत्वों के साथ उचित नींद भी दें। जल्दी सोने की आदत किसी आयु वर्ग के लिए लाभकारी है। 

प्रौद्योगिकीय सफलताओं के इस जमाने में मानसिक व शारीरिक सुरक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि इन दोनों का सामंजस्य ही एक सफल जीवन का परिचायक है।



Sources: Google Search


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