Mahilao ki Reproduction system ki problems aur solutions -महिला व प्रजनन तंत्र की सामान्य समस्या

                                                महिला व प्रजनन तंत्र की सामान्य समस्या


प्रजनन तंत्र के संक्रमण या प्र.तं.सं. विभिन्न कीटाणुओं से होने वाले जनन अंगों के संक्रमण हैं | हालांकि प्र.तं.सं. पुरुषों और महिलाओं दोनों में हो सकते हैं, ये महिलाओं में अधिक होते हैं क्योंकि उनके शरीर की रचना और कार्यप्रणाली कीटाणुओं के आसानी से प्रवेश के लिए अधिक अनुकूल है |


जो प्र.तं.सं. यौनिक संपर्क के द्वारा फैलते हैं, उन्हें यौन संचारित रोग, यौन संचारित संक्रमण  या राजित रोग कहते हैं | जनन अंग क्षति पहुंचने  तथा योनि में सामान्यत: पाये जाने वाले कीटाणुओं की अत्यधिक वृधि के कारण भी संक्रमित हो सकते हैं | सामान्य स्वास्थ्य का खराब स्तर, जनन अंगों की अस्वच्छता तथा कम आयु में यौनिक क्रिया की शुरुआत आदि से महिला में प्र.तं.सं. के होने की संभावना अधिक हो जाती है |


प्रजनन तंत्र के संक्रमण के प्रति लापरवाही

आमतौर पर महिलाएं असामान्य योनि स्त्राव तथा जनन अंगों पर जख्म आदि जैसी व्यक्तिगत समस्याओं के विषय में चर्चा करने में बहुत झिझकती व शर्माती हैं | उन्हें यौन संबंधित समस्याओं पर चुपचाप रह कर बर्दाश्त करते रहना सिखाया गया है | एक यह भी डर रहता है कि अगर कोई महिला प्र.तं.सं., विशेषत: एस.टी.डी., से पीड़ित पाई जाती है तो उसे “बदचलन” कहा जा सकता है | अपर्याप्त यौन शिक्षा तथा चिकित्सा सुविधाओं की कम उपलब्धता के कारण उपचार करवाने में झिझक होती है | घर के निर्णय लेने वाले, जैसे कि सास, महिला को गर्भ सम्बंधित समस्याओं, जैसे कि गर्भावस्था तथा निःसंतानता, के लिए तो स्वास्थ्यकर्मी के पास ले जाने की अनुमति दे देंगे लेकिन “अधिक योनि स्त्राव “ जैसे “मामूली” लक्षणों के लिए नहीं |


प्र.तं.सं. को गंभीरता से न लेने का एक अन्य कारण यह भी है कि उनसे जान को सीधा खतरा नही होता है | वे महिला के शरीर में घर बना लेते हैं और लंबे समय तक चलने वाला पेट दर्द या कमर दर्द अथवा निःसंतानता जैसी समस्याएं उत्पन्न कर देते हैं |


एच.आई.वी. संक्रमण होने की अधिक संभावना, गर्भाशय से बाहर गर्भधारण (एक्टोपिक गर्भ ), गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर तथा मृत्यु | इनके अतिरिक्त गर्भावस्था सम्बंधित जटिलताएं भी हो सकती हैं जैसे कि समय से पहले प्रसव, जन्म के समय बच्चे का कम वजन, मृत बच्चा पैदा होना, गर्भपात या जन्मजात विकार | जन्म के समय योनि में से गुजरते हुए बच्चे को आंखों का संक्रमण हो सकता है जिससे अंततः निमोनिया तथा अंधापन हो सकता है |


असामान्य योनि स्त्राव

योनि से थोडा सा गीलापन होना एक सामान्य बात है | यह योनि द्वारा अपने सफाई करने का एक प्राकृतिक तरीका है | स्त्राव की मात्रा तथा प्रकार माहवारी चक्र के विभिन्न दिनों में अलग-अलग तरह का हो सकता है | प्रजनन काम के दौरान यह स्त्राव मात्रा में अधिक तथा पानी जैसा साफ व पतला हो जाता है |


योनि से स्त्राव की मात्रा, रंग तथा गंध में परिवर्तन संक्रमण का संकेत हो सकता है परंतु इससे संक्रमण के प्रकार का पता चलाना कठिन हो सकता है | आपको स्वास्थ्यकर्मी द्वारा परिक्षण करवा कर संक्रमण के प्रकार का पता करवाना चाहिए | ध्यान रखिए कि कभी-कभी कैंसर जैसी किसी अन्य समस्या के कारण भी स्त्राव हो सकता है ।


असामान्य योनि स्त्राव के आम कारण

कई प्रकार के संक्रमणों के कारण असामान्य योनि स्त्राव हो सकता है | नीचे कुछ ऐसे ही संक्रमणों का उनके सबसे आम लक्षणों के साथ वर्णन दिया गया है:


यीस्ट (फफूंद संक्रमण, केन्डीडा, सफेद पानी) :


आम तौर पर यह यौ.सं.रोग नहीं होता है और न ही इससे कोई जटिलताएं होती हैं परंतु इससे जनन अंगों में काफी परेशान करने वाली खुजली होती है | 


लक्षण :


दही जैसा, सफेद दानों या धागों जैसा स्त्राव |

योनि के बाहर तथा अंदर की खाल चमकदार तथा लाल हो जाती है जिससे खून भी जा सकता है |

योनि के अंदर तथा बाहर खुजली होना |

पेशाब करते समय जलन महसूस होना |

डबलरोटी के बनाने जैसी दुर्गन्ध आना |

सहवास के दौरान दर्द होना ।




जनन अंगों पर जख्म या घाव

जनन अंगों पर होने वाले अधिकतर जख्म या घाव यों.सं.रोगों के कारण होते हैं | यह कहना कठिन है कि ये किस रोग के कारण हो रहें हैं क्योंकि सिफलिस (आतशक) तथा सेंक्राइड द्वारा होने वाले जख्म एक जैसे ही दीखते हैं | जनना अंगों पर होने वाले जख्म या घाव एच.आई.वी. (एड्स एक विषाणु) के शरीर में प्रवेश का सबसे सरल तरीका है |


पेल्विक एन्फ्लामेंट्री डिजीज (पी.आई.डी.)

पी.आई.डी. महिला के पेट के निचले भाग में स्थित जनन अंगों के संक्रमण को दिया गया नाम है | इसे आप तौर पर “पेल्विक संक्रमण” भी कहा जाता है | यह तब हो सकता है जब आपको गोनोरिया (सूजाक ) या क्लेमाइडिया जैसे कोई यों.सं.रोग हुआ हो और उसका उपचार नहीं किया गया हो | अगर निकट पूर्व काल में प्रसव या स्वत: गर्भपात या गर्भपात अस्वच्छ परिस्थितियों में किया गया हो तो भी यह रोग हो सकता है |


पेल्विक संक्रमण करने वाले कीटाणु योनि तथा गर्भाशय ग्रीवा में से होते हुए गर्भाशय, फैलोपियन नलियों तथा अंडाशयों तक पहुंच जाते हैं | अगर इस संक्रमण का समय पर उपचार नहीं किया जाता है तो इससे लंबे समय तक रहने वाला दर्द, गंभीर बीमारी या मृत्यु हो सकती है | फैलोपियन नालियों में संक्रमण से वहां स्कार बन सकते हैं जिनसे आपको निःसंतानता या गर्भाशय के बाहर गर्भ ठहरने (“एक्टोपिक गर्भ”) का खतरा हो सकता है |



यौन संचारित रोग अर्थात एस.टी.डी.

यौन संचारित रोग या एस.टी.डी. एक व्यक्ति से दुसरे व्यक्ति को यौन संबंधों से फैलने वाले रोग हैं | किस प्रकार के यौन संबंध-योनि, मुख या गुदा का एस.टी.डी कर सकते हैं | कभी-कभी ये रोग केवल संक्रमित लिंग या योनि को अन्य व्यक्ति के जनन अंगों से रगड़ने से भी हो सकते हैं | एस.टी.डी. किसी संक्रमित गर्भवती महिला से उसके बच्चे को जन्म से भी पहले गर्भ में या प्रसव के दौरान संचारित हो सकते हैं |


भारत में एस.टी.डी.


विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि प्रतिवर्ष उपचार किये जा सकने वाले यौन संचारित संक्रमणों के लगभग 33.3 करोड़ नये मामले विश्व में होते हैं |


भारत में यौ.सं.रोगों के नयें मामलों की अनुमानित वार्षिक दर 5% है | इसका अर्थ है कि प्रतिवर्ष यौ.सं.रोगों के लगभग 5 करोड़ नये मामले हो जाते हैं ।


यौ.सं.रोग शहरों तथा गावों दोनों में पाए गए हैं और ये 15 -45 वर्ष की महिलाओं में सबसे अधिक होने वाले संचारी रोग हैं |


महिलाओं तथा पुरुषों-दोनों को एस.टी.डी. हो सकते हैं परंतु महिला से पुरुष को फैलने की तुलना में पुरुष से महिला का संक्रमती होना कहीं अधिक आसान होता है | ऐसा लिंग-योनि सहवास क्रिया में महिला की योनि एक बड़ा भाग लिंग के संपर्क में आने तथा संक्रमित वीर्य का योनि में देर तक पड़े रहने के कारण होता है | इससे महिला को गर्भाशय, फैलोपियन नलिकाओं तथा अंडाशयों में संक्रमण होने की संभावना अधिक हो जाती है |


किसी महिला के लिए एस.टी.डी. से बचना एक कठिन कार्य हो सकता है क्योंकि उसे अकसर ही अपने साथी की सहवास क्रिया के लिए मांग पूरी करनी पड़ती है | इसके आलावा उसे यह भी नहीं पता होता है कि उसका साथी एस.टी.डी से पीड़ित है या वह अन्य महिला से सहवास कर सकता है तो वह अपनी पत्नी को संक्रमित कर सकता है | दोनों यौन साथियों की एस.टी.डी से रक्षा करने के लिए कंडोम एक अच्छा साधन हैं परंतु एक महिला के लिए पुरुष को कंडोम प्रयोग करने के लिए राजी करना कठिन हो जाता है ।


अकसर ही इनके कारण कुछ ऐसे भागों में जख्म हो सकते हैं जो रोगी को दिखाई नहीं देते हैं | हालांकि ऐसे परिक्षण उपलब्ध हैं जिनसे महिला में यौ.सं.रोग की उपस्थिति का पता लगाया जा सकता है परंतु ये परिक्षण काफी महंगे व हर जगह उपलब्ध नहीं होते हैं और कभी-कभी ये पूर्णतया सही परिणाम भी नहीं देते हैं |


एस.टी.डी. के परिणाम-पुरुषों की तुलना में महिलाओं से अधिक विविधता वाले तथा गंभीर होते हैं | इनके कारण महिलाओं को मानसिक तनाव भी अधिक होता है |



एस.टी.डी के प्रकार

ट्राइकोमोनायसिस

यह कोई संक्रमण नहीं है परंतु इससे होने वाली खुजली आपको बहुत परेशान कर सकती है | इस संक्रमण के कारण पुरुष के लिंग में सफेद या हरे पानी जैसा स्त्राव निकलना तथा पेशाब करते समय परेशानी जैसे लक्षण हो सकते हैं | उसके लिंग में संक्रमण होने के बावजूद भी वह लक्षण रहित हो सकता है और सहवास करने से वह संक्रमण को दूसरों को फैला सकता है |



पुरुष में किसी संक्रमित महिला के साथ सहवास करने के 2-5 दिनों के बाद लक्षण प्रकट होते हैं लेकिन महिला ने ये लक्षण कुछ सप्ताहों या महीनों के बाद ही आतें हैं | यह भी होता है कि संक्रमित होने के बावजूद भी पुरुष या महिला में कोई भी लक्षण नजर न आएं लेकिन फिर भी वे दुसरे व्यक्तियों को ये रोग फैलाने में सक्षम हैं |


जननांगों पर मस्से

मस्से ‘ह्यूमन पेपिलोमा विषाणु (एच.पी.वी.) के संक्रमण के कारण होते हैं | जननांगों पर होने वाले मस्से शरीर के अन्य भागों पर होने वाले मस्से की तरह दीखते हैं | यह संभव है कि जननांगों पर मस्से हों और व्यकित को इसका पता न हो विशेषत: अगर वे योनि के भीतर या लिंग के सिरे के भीतर हो | मस्से बिना उपचार के भी ठीक हो जाते हैं परंतु ऐसा होने में बहुत समय लग सकता है | आमतौर पर ये बढ़ते हैं, इसलिए उनका उपचार करना ही बेहतर है |


लक्षण


खुजली

छोटे-छोटे, दर्दरहित, सफ़ेद या भूरे रंग के दाने जैसे उभार हो जाते हैं जिनकी सतह खुरदुरी होती है –

महिलाओं में ये योनि प्रकोष्ठों, योनि के भीतर या गुदा के आस-पास होते हैं |



जननांगों पैर जख्म (अल्सर)

जननांगों पर जख्मों के सामान्य कारण


जननागों पर अधिकतर जख्म यौन संचारित होते हैं | यह कहना कठिन हो सकता है कि ये किस रोग के कारण हुए हैं क्योंकि सिफलिस तथा शेंक्राइड के कारण होने वाले जख्म दिखने में एक जैसे होते हैं | जननांगों पर उपस्थिति जख्म शरीर में एड्स वायरस के प्रवेश के लिए सबसे आसान रास्ता है |


सिफलिस (आतशक)

यह एक गंभीर एस.टी.डी., हैं जिसके प्रभाव शरीर के अनके अंगों पर होते हिं तथा ये कई सालों तक चल सकते हैं | यह “ट्रीपोनिमा” नमक एक कीटाणु से होता है और यह दवाइयों से शीघ्र उपचार करने से पूर्णतया ठीक हो जाता है |


लक्षण :


इसका पहला लक्षण एक छोटा, दर्द रहित जख्म होता है जो एक मुहांसा, छाला, एक सपाट मस्सा या खुला जख्म हो सकता है | यह कुछ दिनों या सप्ताह तक जननांग पर रहकर, अपने आप गायब हो जाता है लेकिन रोग शरीर में धीरे-धीरे फैलता है |


कई सप्ताहों या महीनों के पश्चात यह रोग फिर से लक्षण उत्पन्न करता है | रोगी को गला ख़राब, बुखार, शरीर पर लाल दानें ( विशेषत: हाथ की हथेलियों तथा पैर की एड़ियों पर ), मुहं में छाले या जोड़ों में सूजन हो सकती है | इस अवस्था में रोगी इस रोग को अन्य लोगों को संचारित आकर सकता है |


ये सभी लक्षण बिना उपचार के फिर से गायब हो जाते हैं लेकिन बीमारी चालू रहती हैं | अगर इसका उपचार नहीं किया जाए तो सिफलिस ह्रदय रोग, लकवा, मानसिक रोग तथा मृत्यु भी कर सकती है |


गर्भवस्था तथा सिफलिस. गर्भवती महिला अपने अजन्मे बच्चे को सिफलिस संचारित कर सकती है जिसके कारण वह समय से पहले, विकृत या मृत पैदा हो सकता है | आप गर्भवस्था के दौरान सिफलिस के लिए रक्त परिक्षण तथा उसका उपचार करा कर ऐसा होने से रोक सकती हैं | अगर गर्भवती महिला व उसके साथी का सिफलिस के लिए रक्त परिक्षण पॉजिटिव पाया जाता है तको उन दोनों का बेंजाथीन पेनिसिलिन इंजेक्शन : 24 लाख यूनिट, सप्ताह में एक बार, तीन सप्ताहों तक, मांसपेशियों : में लगा कर उपचार होना आवशयक हैं |


शेकराइड

यह एक कीटाणु द्वारा होने वाला एस.टी.डी. है | अगर इसका शीघ्र उपचार किया जाए तो, यह औषधियों से ठीक हो सकता है|


लक्षण :


जननागों या गुदा पर एक या उससे अधिक जख्म जो नर्म व दर्द पूर्ण होते हैं और उनमें आसानी से खून बह सकता है |


जांघों में दर्द्पूर्ण गिल्टियां हो जाना।


मामूली सा बुखार


महत्वपूर्ण: जननांगों पर जख्मों में से, सहवास के दौरान, एड्स का विषाणु आसानी से गुजर सकता है | एच.आई.वी./ एड्स की रोकथाम के लिए यह आवशयक हैं कि आपके या आपके साथी के जननांगों पर जख्म की स्थिति में सहवास न करें |


जननांग ( जेनाईटल) हर्पीस

यह एक विषाणु द्वारा  होने वाले एस.टी.डी. है | यह जननांगों या मुख पर हो सकता है | इससे छोटे-छोटे दाने हो जाते हैं जो महीनों या सालों तक आते-जाते रहते हैं | आपको राहत देने के लिए उपचार उपलब्ध है |


हर्पीस द्वारा मुख पर होने वाले सभी दाने यौन संबंधों से नहीं फैलते हैं | बच्चों व बड़ों को अकसर ही ये दानें बुखार या जुकाम की स्थिति में भी हो जाते हैं |


लक्षण :

जननांगों या जांघों में झुनझुनाहट, खुजली या दु:खना महसूस होना |


तत्पश्चात वहां छोटे –छोटे फफोले जैसे दानें हो जाते हैं जो फूट कर, दर्द्पूर्ण घाव में परिवर्तित हो जाते हैं | पहली बार हर्पीस के दाने या जख्म होने पर वे 3 सप्ताह या उससे भी अधिक समय तक रह सकते हैं |

आपको जांघों में गिल्टियां, बुखार , सिरदर्द, शरीर में दर्द आदि भी हो सकता है |

अगली बार होने वाला संक्रमण इससे कम तीव्रता का होगा |


उपचार :

इससे राहत पाने के लिए :


अपने दानों व जख्मों को छूने के बाद, हर बार, साबुन व पानी से हाथ धो लें |

आपने हाथों से अपनी व बच्चों की आंखों कभी न छुएं | आंखों में हर्पीस संक्रमण काफी गंभीर हो सकता है |

जब आपको हर्पीस के दाने या जख्म हों तब सहवास न करें | सहवास से आप आसानी से हर्पीस संक्रमण अपन यौन साथी को फैला सकती है |


गर्भवस्था तथा हर्पीस

हर्पीस से संक्रमित गर्भवती महिला को अगर प्रसव के समय उसके दाने व जख्म हैं तो वह इस संक्रमण को नवजात शिशु को भी संचारित कर सकती है | इससे बच्चे को गंभीर समस्याएं हो सकती है | कोशिश करें कि आपका प्रसव अस्पताल में हों | यहां ऑपरेशन द्वारा प्रसव कराकर बच्चे को जन्मा जा सकता है  या बच्चे के जन्म के पश्चात उसे कुछ विशेष दवाईयां दी जा सकती है।


एड्स (एक्वायर्ड एम्युनो डेफिसिएंसी सिंड्रोम, एच.आई.वी., स्लिम डिजीज)

एड्स/ एच.आई.वी. नामक विषाणु से होने वाला एक यौ.सं.रोग है | किसी व्यक्ति के खून, योनि द्रव्य या वीर्य के दुसरे व्यक्ति के शरीर में किसी भी माध्यम से प्रवेश करने से यह रोग फैलता है|


सहवास के दौरान महिलाओं को यह संक्रमण आसानी से फ़ैल सकता है | ध्यान रखिए, बाहरी रूप से एकदम स्वास्थ्य दिखने वाले लोगों से भी यह संक्रमण आपको फ़ैल सकता है |


एड्स/एच.आई.वी. संक्रमण का कोई उपचार अभी तक उपलब्ध नहीं है | अगर संभव हो तो किसी भी ऐसे व्यक्ति के साथ सहवास न करें जिसे एच.आई.वी. /एड्स होने का जोखिम हो | अपनी रक्षा के लिए हर सहवास क्रिया के समय एक नया कंडोम प्रयोग करें |


हिपेटाइटिस बी(पीलिया)

यह जिगर को हानि पहुंचाने वाले एक विषाणु द्वारा होने वाला खतरनाक रोग है | यह संक्रमण तथा फैलता है जब इस विषाणु से संक्रमित किसी व्यकित का रक्त, वीर्य, लार या योनि स्त्राव किसी अन्य व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाए | यह बहुत आसानी से, विशेषत: सहवास के दौरान, एक व्यकित से दुसरे व्यकित को फ़ैल सकता है |


लक्षण :


बुखार

थकावट व कमजोरी महसूस होना

आंखों व त्वचा का पीलापन

पेट में दर्द

पेशाब का रंग गहरा होना व मल का रंग सफेद/पीला होना |

कोई भी लक्षण न हो |

उपचार :

इसके उपचार के लिए कोई दवाईयां नहीं हैं | दरअसल, दवाईयां लेने से आपके जिगर को और भी नुक्सान हो सकता है | अधिकतर लोग हीपेटाइटिस बी से स्वयं ही ठीक हो जाते हैं | कुछ लोगों को जिगर की ठीक न होने वाली समस्याएं  हो सकती हैं जिनमें जिगर का कैंसर भी शामिल है | जितना हो सके, आराम कीजिए तथा आसानी से पचने वाला भोजन खाना चाहिए।



योनि की सूजन

(बारथोलिन ग्रंथि का संक्रमण)


योनि के अंदर उसकी भित्ति में 2 ग्रंथियां होती हैं जिन्हें बारथोलिन ग्रंथियां कहते हैं | ये योनि को गिला रखने के लिए द्रव का निर्माण करती है | कभी-कभी इनमें कीटाणु प्रवेश कर जाते हैं और एक या दोनों ग्रंथियों को संक्रमित कर देते हैं |


लक्षण :

योनि कि दीवार दर्द पूर्ण, गर्म व सूज जाती है और उसका रंग गहरा हो जाता है | आम तौर पर यह एक तरफ हो होती है |

कभी-कभी बिना दर्द की, केवल सूजन होती है |

हालांकि यह हमेशा एस.टी.डी. के कारण नहीं होता है परंतु गोनोरिया तथा क्लेमाइडिया से संक्रमित महिला के इसके होने की अधिक संभावना होती है |


उपचार :

साफ, गर्म पानी में एक कपड़ा भिगोकर उसे सूजन पर लगाएं | पानी इतना गर्म नहीं होना चाहिए कि वह आपको जला दे | ऐसा कई बार और उतने समय तक करते रहें जब तक सूजन फूट न जाए और उसकी मवाद बाहर न आ जाए या सूजन कम न हो जाए |


अगर वह भाग सूजा हुआ तथा दर्दपूर्ण ही रहता है तो किसी प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मी से परामर्श करें जो सूजन में चीरा लगाकर, मवाद को बाहर कर सकेगी|

एस.टी.डी. के उपचार की अन्य दवाइयां,इस अध्याय में हमने एस.टी.डी. व अन्य समस्याओं के उपचार की दवाइयों की सिफारिश की है | 

                      



जिस एस.टी.डी. का आप उपचार करना चाहती हैं उनमें ये दवाईयां अब प्रभावी नहीं रह गई है |


आपको किसी दवाई के प्रति संवेदनशीलता है | कुछ लोगों को पैनिसिलिन व सल्फा जैसी दवाइयों के प्रति संवेदनशीलता होती है |


इस अध्याय में सर्वोतम दवाइयों के बारे में बताने के अलावा प्रत्येक रोग के लिए उन दवाईयों का भी वर्णन किया है जो उसके उपचार में कारगर होंगी | यह भी याद रखिए कि अधिकतर लोगों को एक समय में एक से अधिक एस.टी.डी. या जननांगों की समस्या होती है, इसलिए वैसे भी एक से अधिक दवाई लेनी पड़ती है | जो भी दवाई आप लें, उसे सही समय व तरीके से लें पर चिकित्सक से परामर्श अवश्य लें|


इसी कारण अनेक क्षेत्रों में गोनोरिया के विरुद्ध उपचार के लिए प्रयोग की जाने वाली दवाईयों के विरुद्ध प्रतिरोधन उतपन्न हो गया है | दवाई प्रतिरोधित यौ.सं.रोगों और उनके उपचार के लिए कारगर अन्य दवाईयों के बारे में अपने क्षेत्र के स्वास्थ्यकर्मी से जानकारी प्राप्त करें |


सुनिश्चित करें कि आपके यौन साथी का भी उपचार हो |

सारी दवाईयां लें |

तब तक सहवास न करें जब तक आपके सभी लक्षण ठीक न हो जाएं और आप व आपके साथी ने सभी दवाईयां नहीं खा ली हों |

अगर उपचार समाप्ति के पश्चात भी आपके लक्षण पूर्णतया समाप्त नहीं हुए हैं तो स्वास्थ्य कर्मचारी से अवश्य परामर्श करें|

जब फिर से यौन संबंध शुरू करें तो सुरक्षित यौन संबंध ही बनायें ।

 


प्रजनन तंत्र के संक्रमणों तथा परिवार नियोजन के साधनों में संबंध


कुछ प्रकार के परिवार नियोजन साधन भिन्न प्रकार के प्र.तं.सं. उत्पन्न कर सकते हैं या उन्हें बद्तर बना सकते हैं  | अन्य कुछ का या तो ऐसा कोई प्रभाव नहीं होता है या वे सक्रिय रूप से एस.टी.डी. से रक्षा करते हैं | इस चार्ट में प्र.तं.सं. तथा विभिन्न परिवार साधनों में संबंध का सारांश दिया गया है :



डायाफ्राम और/अथवा शुक्राणुनाशक क्रीम

जीवाणुओं से होने वाले कुछ एस.टी.डी से गर्भाशय ग्रीवा के संक्रमणों की आंशिक रूप से रक्षा करता है | विषाणुओं से होने वाले यौ.सं.रोगों (एड्स सहित ) से रक्षा करता है ।

यौ.सं.रोगों से अतिरिक्त रक्षा के लिए कुछ अन्य अधिक प्रभावी अवरोधक साधन सुझाएं |



अगर प्र.तं.सं.से पीड़ित महिला को इस संक्रमण के उपचार के बिना चढ़ा की जाए या इसे लगाने के लिए अस्वच्छ उपकरणों का प्रयोग किया जाए तो यह गर्भाशय का संक्रमण उत्पन्न कर सकती है | एस.टी.डी. से कोई सुरक्षा नहीं |


गर्भाशय या उसकी ग्रीवा में प्रयुक्त होने वाले सभी उपकरणों व औजारों को अच्छी तरह से कीटाणु रहित कर लें | इसे लगाने से पहले महिला की प्र.तं.सं. की उपस्थिति के लिए जांच करें | अगर वह है तो पहले उसका उपचार करें या फिर कोई अन्य साधन प्रदान करें | निरोधात्मक एंटीबायोटिक्स देना भी सोचें | एस.टी.डी. से अतिरिक्त सुरक्षा की लिए कोई अवरोधक साधन प्रयोग करने की सलाह दें |


इंजेक्शन


एस.टी.डी से कोई सुरक्षा नहीं | पी.आई.डी. के जोखिम को कम कर सकता है |





सहवास की हर क्रिया में एक कंडोम का प्रयोग करें | कंडोम एस.टी.डी., एच.आई.वी./एड्स आपके साथी के स्वास्थ्य तथा अवांछित गर्भ से आपकी रक्षा करेगा | अपने साथी को कंडोम प्रयोग करने के लिए प्रेरित करना सीखने के लिए अध्याय 5 देखिये |


सहवास के बाद जननांगों को बाहर से भली भांति धोएं |


सहवास के बाद पेशाब अवश्य करने जाएं |


योनि में कोई तरल पदार्थ, जड़ी बूटी, या सुखाने के लिए स्वस्थ रहने के लिए निर्मित उसकी पाउडर आदि न डालें | योनि को साबुन-पानी से धुलाई या तराई स्वस्थ रहने के लिए उसकी प्राकृतिक नमी के विरुद्ध काम करती है | अगर सहवास के दौरान योनि सुखी है तो इससे उसमें घर्षण व खुरचन होती है जिससे एड्स संक्रमण व अन्य एस.टी.डी. का जोखिम बढ़ जाता है |



पुरुषों व महिलाओं को यौ.सं.रोगों से उनके व उनके परिवारों के स्वास्थ्य को होने वाले खतरों के विषय में शिक्षित कर सकते हैं ।




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