Anger Management for Teens-किशोरों के लिए क्रोध प्रबंधन

 बच्चे बचपन मे बड़े प्यारे और आज्ञाकारी होते हैं शरारतें करते हैं, हँसते हँसते हैं और खुश रहते है पर जैसे जैसे उनकी उम्र बढ़ती जाती है उनके शरीर का विकास होता चला जाता है, सोचने समझने की शक्ति विकसित होती है और उनमें सीखने

और बदलाव करने की क्षमता भी बढ़ती जाती है

किशोरावस्था बड़े संघर्ष और तूफान की अवस्था कही गयी है इस अवस्था मे संवेगों में आपस मे टकराव शुरू हो जाता है, हार्मोनल बदलाव की वजह से भी किशोरों में मानसिक दबाव पड़ना शुरू हो जाता है और वो चिड़चिड़े, गुस्सैल और हिंसक हो जाते हैं

ऐसे में वो आपकी बातों का जवाब देना शुरू कर देते हैं, आपकी बातों को अनदेखा करते हैं, आपकी आज्ञाओं का पालन नहीं करते, अत्यधिक क्रोध आने पर घर की चीज़ें तोड़ना फोड़ना शुरू कर देते हैं, घर से भाग जाते हैं शराब खोरी या बुरी लत या संगत का शिकार हो कर अपराधी भी बन सकते हैं


कारणों का पता लगाना

सबसे पहले तो उनके क्रोध के कारणों का पता लगाना चाहिए कि उनके गुस्से का क्या कारण है किस वजह से उन्हें गुस्सा आता है

कारणों का निदान

क्रोध के कारणों का पता लग जाने के बाद बारी आती है उनके निदान की मां लीजिए, आपके बच्चे को खाने में कुछ चीज़ें पसन्द नहीं है तो आप उन्हें खाने में उन चीजों को शामिल न करें जो उन्हें पसन्द न हों

पौष्टिक भोजन देना

अगर किशोर में कमजोरी के लक्षण नजर आते हैं तो आवश्यक है आप उसे पौष्टिक भोजन दें क्योंकि किशोरावस्था में शरीर का विकास बहुत तेज़ी से होता है ऐसे में शरीर को ज़रूरत होती है पौष्टिक तत्वों से परिपूर्ण भोजन की

पौष्टिक तत्वों से परिपूर्ण भोजन देने के चक्कर में ऐसा न हो आप जो उन्हें खाने को दें वो बेस्वाद और नीरस हो, इसलिए स्वाद का भी ध्यान रखें ताकि किशोर भोजन करने में रुचि ले

बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार रखे, उनकी छोटी बड़ी सारी परेशानियों को समझे उनका हल निकालने में उनकी मदद करें, उनकी बातों को अनदेखा न करें न उन पर किस भी बात का दबाव बनाने की कोशिश करें

घर का माहौल शांत बनाए रखें घर मे हमेशा लड़ाई झगड़े होने से भी किशोरों में चिड़चिड़ापन और गुस्से की प्रवृत्ति बढ़ने लगती है, ज़्यादातर घर का ख्याल रखें ऐसा न हो आप घर पर रहने की बजाए ज़्यादातर बाहर रहती हो और जब आपके बच्चों को आपकी ज़रूरत हो आप उनके पास हो ही न, ऐसी स्थिति भी समस्या पैदा कर सकती है

बच्चों में व्यायाम करने की आदतों के विकास करें, वो खेल कूद जिनमे वो मानसिक और शारीरिक रूप से सक्रिय हो सकें उनको बढ़ावा दे जैसे बैडमिंटन, क्रिकेट, तैराकी आदि

इससे उनका शरीर भी चुस्त दुरुस्त रहेगा और मन भी स्वास्थ्य रहेगा

बच्चों को ध्यान करने के लिए प्रेरित करें योगा की तरफ उनका रुझान बढ़ाएं किशोरावस्था बेहद संवेदनशील अवस्था है जिसके बारे में उन्हें बताना बिल्कुल आवश्यक होता है जब वे अपनी शारिरिक बदलाव के साथ सामंजस्य कर रहे होते हैं ऐसे में उन पर अन्य जिम्मेदारियों का बोझ भी बढ़ने लगता है और उनको  लेकर लोगों की उनसे उम्मीदें भी बढ़ने लगती हैं ऐसे में उनमें चिड़चिड़ापन होना गुस्सा आना आम बात है

अब आपको उन्हें इन समस्याओं के बारे में पहले से ही धीरे धीरे बताने की ज़रूरत है, की उन्हें किसी किस तरह की समस्याएँ हो सकती हैं हार्मोनल बदलाव की वजह से शरीर और मन पर क्या क्या प्रभाव पड़ता है, और उनका निराकरण कैसे किया जा सकता है

किशोरों में स्वस्थ आदत विकसित करने की कोशिश करनी चाहिए, उन्हें किताबे पढ़ने, नई नई चीजें सीखने के लिए उत्साहित और प्रेरित करना चाहिए

ऐसे लोग जिनमे अलग तरह के हुनर हैं या जिन्होंने कठिन मेहनत से खुद को विकसित किया है ऐसे व्यक्तियों के बारे में बच्चों को  बताना चाहिए मौका मिले तो उनसे मिलाना भी चाहिए जिससे किशोर उत्साहित होगा और अपना सारा ध्यान और ऊर्जा का सार्थक प्रयोग कर सकेगा

फालतू की चीज़ों से दूर रहेगा और क्रियान्वयन गतिविधियों में लिप्त होने के कारण वो अपना ध्यान फालतू कामों में नही लगा पाएगा

अगर इस सबके बावजूद भी किशोर में ये समस्या आती है कि वो अचानक गुस्सा हो जाता है, जल्दी शांत नहीं होता तो ज़रूरत है कि आप उसे किसी अच्छे डॉक्टर से सम्पर्क कर उनसे सलाह लें और उनकी बताई हुई बातों का पालन करें

कभी कभी किशोरावस्था में संवेगों की अस्थिरता के कारण कुछ मानसिक समस्याएं भी हो सकती हैं जिनका तुरंत निदान किया जाना अति आवश्यक है

आपको इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि आपके बच्चे के स्कूल का माहौल कैसा है वहाँ ठीक तरह से शिक्षा दी जा रही है या नहीं कहीं शिक्षक से तो कोई समस्या नही है या कई बार क्लास में कमज़ोर छात्र को शिक्षक अनुचित रूप से दंडित करते हैं, या बाकी के सहपाठी बार बार किशोर को तंग करते हों उसे अपमानित करते हो, ऐसे में किशोर में कुंठित भावना का विकास हो जाए और वो अनायास ही नाराज़ हो जाता हो

आपके घर के आसपास का माहौल भी आपके बच्चे पर असर डाल सकता है पड़ोसियों का व्यवहार, रिश्तेदारों का व्यवहार भी ये समस्या पैदा करते है, आपके बच्चे के वो दोस्त जिनके साथ वो ज़्यादातर उठता बैठता हो खेलता हो आपको पता होना चाहिए कि उनकी भाषा शैली क्या है उनके रंग ढंग कैसे हैं कहीं वो आपराधिक प्रवृत्ति के तो नहीं

संगत का असर भी किशोरों में समस्या पैदा कर सकता है हो सकता है दोस्त नशा करते हो तो साथ रह कर आपका बच्चा भी नशा करने लग जाए ऐसे में बच्चे की तरफ से बिल्कुल बेफिक्र हो जाना भी सही नहीं है

अक्सर बच्चे लगातार एक जगह रहते हुए उब जाते है, एक ही रूटीन, ऊपर से काम का बोझ, फिर सुबह उठ कर स्कूल जाना जब बार बार यही होता है तो उनमें उत्साह खत्म हो जाता है और वो चिड़चिड़े हो जाते हैं जिनकी वजह से उन्हें जल्दी गुस्सा आने लगता है, ऐसे में आप उन को ले कर कहीं भी बाहर चले जाएं, किसी अच्छी जगह जहां आस पास का माहौल खूबसूरत हो या प्रकृति से भरपूर हो मसलन आप शहर में रहते हैं तो किसी पहाड़ी जगह पर चले जाएँ जहां जा कर आपके बच्चों को नई जगह के बारे में जानने का देखने का मौका मिलेगा उन्हें रोज़ के उबाऊपन से छुटकारा मिलेगा मानसिक रूप से उन्हें खुशी और सुकून हासिल होगा

कभी कभी आप बाहर खाना खाने भी जा सकती हैं जिससे स्वाद भी बदलेगा और मानसिक शांति और उत्साह बढ़ेगा

अक्सर किशोरों में नई चीज़े जानने की भी बड़ी जिज्ञासा होती है आप उन्हें म्यूज़ियम, चिड़ियाघर ले जा सकती हैं

जहाँ वो नई नई चीजों के बारे में अपने अनुभव से जानेंगे और सीखेंगे

प्लेनेटेरियम भी ख़ास जगह है जहां जा कर आप दुनिया से बाहर यानी सितारों के बारे में जानकारी और अनुभव ले सकेंगे ये नया सीखने के अनुभव को बढ़ाएगा


किशोरों में पढ़ने की प्रवृति जागरूक करने के लिए समय समय पर उन्हें किताबे भेंट करें किताबे एक बेहतर साथी होती हैं जिनके साथ इंसान कभी अकेला नहीं होता इनके साथ सोचने के नए आयाम विकसित होते है, बोलने समझने की कला का विकास होता है और कल्पना था तर्क शक्ति विकसित होती है

समय का सदुपयोग होता है दिमाग फालतू चीजों की तरफ नहीं जाता नकारात्मकता से दूर रहता है जिससे मानसिक स्वास्थ्य के साथ शरीर भी ऊर्जावान बना रहता है


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