Anger problem in growing children | बढ़ते बच्चों में गुस्से की समस्या

 


Anger problem in growing children | बढ़ते बच्चों में गुस्से की समस्या

Anger problem in growing children | बढ़ते बच्चों में गुस्से की समस्या_ ichhori.com



बढ़ते हुए प्रतियोगिता के दौर में आजकल कोई भी मानसिक रूप से पूरी तरह से स्वस्थ नहीं है| मगर हम लोगों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बच्चों में आ रहे निराशाजनक व्यवहार  और मानसिक बदलावों को समझ कर उन्हें उनसे निजात दिलाना है |बच्चों की शैतानियां,उल्टा जवाब, चीजें फेंकना चीखना चिल्लाना यह सब लगभग हर बच्चे के जीवन में होता है |बढ़ते हुए बच्चों का गुस्सा करना नॉर्मल बात है| इसे आप बच्चे के विकास का एक हिस्सा भी कह सकते हैं|

 कई बच्चे तो अपने स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों या अपने साथ खेलने वाले बच्चों के खिलौने छीनकर उन्हें मारते है चीखते हैं चिल्लाते हैं| मगर कई बार बच्चे असाधारण रूप से गुस्सा और अजीब व्यवहार करते हैं| कभी-कभी वे इतनी ज्यादा आक्रामक हो जाते हैं ,जो भयभीत करने वाला और नियंत्रण से बाहर होता है| उन्हें इतना भी समझ नहीं होती है की वे बाहर वालों के सामने है या घरवालों के|

गुस्सा आने के कारण-

 गुस्सा एक प्रकार का नकारात्मक भाव है  जो व्यक्ति के अंतर्मन में रहता है| गुस्से में बच्चे सहि ओर गलत समझने की शक्ति खो देते हैं है और गुस्से में गलत काम कर भी लेते हैं|

1- अनुवांशिकता या स्वभाव- बच्चों की आक्रामकता कई बार अनुवांशिक या उनके स्वभावगत भी होती है| यदि बच्चे के माता पिता या परिवार का कोई और जन भी अत्यधिक गुस्सा करता है तो यह अनुवांशिक है मगर कई बार यह बच्चे के स्वभाव के कारण भी होती है बच्चे अपने आसपास के पर्यावरण और घटनाक्रम के प्रति कैसी प्रतिक्रिया देता है या किसी अजनबी से कैसा व्यवहार करता है यह सब कुछ

2- एक साथ बहुत अधिक एक्टिविटी में भाग लेना- आजकल के बच्चे स्कूल ,ट्यूशन, एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी, हॉबी क्लासेस सब कुछ एक साथ अटेंड करने की कोशिश करते हैं| इससे उनके आराम करने के समय कम हो जाता है और अत्यधिक थकान और स्ट्रेस लेवल से कई बार उनकी शुगर कम होने लगती है, तो उन्हें गुस्सा आता है |किसी भी काम में मन नहीं लगता है और चिड़चिड़ाहट और गुस्से के साथ अपनी बात को कहते हुए वे उत्तेजित होने लगते हैं|

3- पारिवारिक वातावरण- बच्चे व्यवहार की सीख अपने परिवार से लेते हैं| यदि परिवार का वातावरण समस्या या चिड़चिड़ाहट से घिरा हुआ है और परिवार के लोग आपस में एक दूसरे से अनुचित व्यवहार करते हुए तेज आवाज में बातें करते हैं, तो बच्चे भी यही सब कुछ सीख कर अपने व्यवहार में ले आते हैं| इसके अलावा यदि माता-पिता लगातार काम में व्यस्त रहते हैं और बच्चे का ध्यान नहीं रख पाते हैं तो बच्चा अपने माता-पिता का ध्यान आकर्षित करने के लिए भी कई बार इस तरह के व्यवहार को अपनाता है|

बच्चों का सामान्य से गुस्सा कब आक्रामकता में बदल जाता है आसानी से पता नहीं चलता है |इसे पहचानने के लिए और उनके स्वभाव में आए बदलावों को जानने के लिए माता-पिता बच्चे के साथ समय बिता कर उनके व्यवहार में आ रहे परिवर्तन को जानना चाहिए और निम्न में से कोई भी लक्षण दिखने पर उसे नजरअंदाज ना करें|

बच्चों में आक्रामकता के लक्षण-

1- बहुत ज्यादा गुस्सा होना

2- छोटी सी बात पर आक्रमण हो जाना

3- सामान्य बातचीत में भी चिड़चिड़ाहट महसूस करना

4- अपने आप को दूसरों से कमतर समझना

5- छोटी सी बात नहीं मानने पर दूसरों को या खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करना


बच्चे का लगातार गुस्से में रहना उनकी सेहत के लिए ठीक नहीं होता है इस सिचुएशन से निपटने के लिए माता पिता को कुछ तरीके जरूर आजमाना चाहिए

1- उनकी हद तय करें- कई बार हम बच्चों को लाड प्यार के कारण सजा नहीं देते हैं, मगर फिर भी बच्चे में आक्रामकता लगातार बढ़ रही हैं, तो उन्हें समझाएं कि मैं दूसरे के साथ कैसा व्यवहार करना है और कैसा नहीं | साथ ही कुछ नियम भी बनाए और उन्हें इस बात को साफ बता दें कि इन नियमों से बाहर जाने पर उन्हें सजा मिलेगी| सजा के तौर पर आप उन्हें डांटे मारे या चिल्लाए नहीं बल्कि कुछ क्रिएटिव कार्य की ओर उन्हें प्रोत्साहित करें| सिर्फ सजा का डर ही ना दिखाएं बल्कि उन्हें सजा जरूर दें|

2- भावना व्यक्त करना सिखाए- बच्चे को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का सही तरीका सिखाएं| उसे प्यार समझाइए कि अपनी बात को मनवाने के लिए हर बार जोरो से चीखना, चिल्लाना या मारना जरूरी नहीं होता है| आप बोल कर भी अपनी बात मनवा सकते हैं| इस से धीरे-धीरे बच्चे का गुस्सा शांत होने लगेगा| यदि बच्चा कोई अच्छा काम करता है तो उसे शाबाशी देना ना भूलें| इस तरह भावनाओं की सही तरह से अभिव्यक्ति करने से बच्चों के अंदर का गुस्सा शांत होने लगता है|

3-पारिवारिक माहौल को बदलने की कोशिश करें- बच्चे आपकी परवरिश का दर्पण होते हैं| वे आपको ही देख कर सीखते है|  यदि आपके परिवार में भी ऐसे आक्रामकता का माहौल है, तो उस माहौल को खत्म करने की कोशिश करें| ताकि बच्चे अपने माहौल को बदला हुआ देखेंगे तो खुद को बदलने की कोशिश जरूर करेंगे|बच्चों को टीवी पर आ रहे ज्यादा हिंसक कार्यक्रमों से दूर रखें |साथ ही आपके परिवार में कोई व्यक्ति है जिसे छोटी छोटी सी बातों पर गुस्सा आ जाता है, उसे भी बच्चे से दूरी बनाए रखने की हिदायत दे दे| परिवार में प्रेम और आपसी सौहार्द का माहौल बना रहना चाहिए, जिससे कि बच्चे का सर्वांगीण विकास आसानी से हो सके और वह डिप्रेशन से बाहर आ जाये|

4- स्वयं स्टैंडर्ड सेट करें- माता-पिता दोनों बच्चों के सामने अपने गुस्से पर नियंत्रण रखकर, बच्चे को भी गुस्से में नियंत्रण रखने के लिए प्रेरित करें| अपने गुस्सैल बच्चे के सामने बेअदबी से पेश ना आए इससे आपके बच्चे के गुस्सैल व्यवहार को और बढ़ावा मिल सकता है|उनके गुस्सैल व्यवहार को समझने की कोशिश करें |कई बार बच्चे अटेंशन करने के लिए भी अपने व्यवहार को बदलते रहते हैं |उनके प्रति अपना प्रेम प्रदर्शित करने में कोई कसर ना रखें मगर यह प्रेम भौतिक वस्तुओं का ना हो |

5- बच्चे की सेहत का ध्यान रखें- अक्सर यह देखा गया है कि अस्थमेटिक , डायबिटीज या अन्य किसी बीमारी से ग्रसित बच्चों को गुस्सा जल्दी आता है और वह डिप्रेशन की शिकार भी जल्द ही होते हैं| पहले से बीमार बच्चे जब डिप्रेशन में जाने लगते हैं तो चिड़चिड़ा  होकर पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाते हैं, बात बात पर गुस्सा करते हैं |उनके व्यवहार में कई तरह के बदलाव आ जाते हैं| इन बदलावों को आप उनकी सेहत पर ध्यान रखकर नजर रख सकते हैं |जब बच्चे डिप्रेशन में या एग्रेसिव होते हैं तो उन्हें या तो भूख नहीं लगती है, या बहुत अधिक भूख लगने लगती है| दिनोंदिन वजन कम होने लगता है या तेजी से वजन बढ़ने लगता है| इसके अलावा कई केस में बच्चों को रात भर नींद नहीं आती या बच्चे सफिशिएंट नींद लेने के बाद भी बिस्तर पर से नहीं उठ पाते हैं| उनकी सेहत का ठीक तरह से ध्यान रखकर आप उनके गुस्से को कंट्रोल कर सकते हैं|

6- बच्चों को फिजिकली व्यस्त रखने की कोशिश करें- कई बार माता-पिता अपनी व्यस्तता के चलने के कारण बच्चों को टीवी, मोबाइल लैपटॉप के सहारे छोड़ कर अपने काम करने लगते हैं |इन सब चीजों से बच्चा व्यस्त तो हो जाता है मगर इन सब चीजों की ज्यादा इस्तेमाल करने से भी बच्चा एग्रेसिव हो जाता है |माता-पिता को चाहिए कि उसका ध्यान स्पोर्ट्स, योगा या किसी और तरह की एक्टिविटी में लगाएं ताकि वह खुद को फिजिकली व्यस्त रख सकें| और वह टीवी मोबाइल इन सब चीजों से दूर रह सके|


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