Children's mental health | बच्चों का मानसिक स्वास्थ

 


Children's mental health बच्चों का मानसिक स्वास्थ

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हम में से हर कोई अपने बच्चों के लिए सबसे अच्छा अभिभावक बनना चाहते है | लेकिन पेरेंटिंग को लेकर अक्सर परस्पर विरोधी विचार और सलाह होती है| आप हमेशा अपने बच्चे को स्वस्थ,आत्मविश्वास से भरा हुआ,विनम्र और दूसरों से आगे देखना चाहते हैं| मगर आज का युग प्रतिस्पर्धा का युग है |आज छोटे से लेकर बड़े तक सभी के ऊपर अपने जीवन में सफल होने, व आगे बढ़ने का दबाव है |आज के दौर में कम उम्र के बच्चों में भी स्कूल पढ़ाई और बिगड़ते माहौल की वजह से स्ट्रेस देखा जाने लगा है| आजकल बहुत कम उम्र के बच्चे में भी आसपास के माहौल और परिवार को लेकर उदासीनता, लड़ाई झगड़े और हिंसा के चलते मानसिक रोग नजर आने लगे हैं |यह वह चिंताजनक स्थिति है |

क्योंकि जिस उम्र में बच्चों की हंसी खुशी के माहौल में रहते हुए खेलना कूदना, कुछ नया सीखना चाहिए उस समय बच्चे मानसिक समस्याओं से ग्रस्त हो जाते हैं| यदि सही समय पर इन समस्याओं को देखा समझा और उनका इलाज नहीं किया गया तो यह बच्चे इन समस्याओं से ग्रस्त हो सकते हैं|

बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक-

एक शोध में यह बात सामने आई है कि भारत में दिनों दिन मानसिक समस्या से जूझ रहे बच्चों के आंकड़े तेजी से बढ़ रहे हैं |बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले बहुत से कारक होते हैं| उनमें से कुछ प्रमुख कारक उनका परिवार, परिवार में माता-पिता के आपसी संबंध ,उनके दोस्त ,दोस्तों के साथ अनोखा कंपटीशन ,पढ़ाई लिखाई में अव्वल आने का प्रेशर और  टेक्नोलॉजी का अधिक उपयोग प्रमुख कारक है|

मानसिक अस्वस्थता के दौरान बच्चे किन समस्याओं से जूझते हैं-

भारत में नेशनल मेंटल हेल्थ सर्वे की एक रिपोर्ट के अनुसार 13 से 17 साल तक की उम्र के 73% बच्चे किसी न किसी मानसिक समस्याओं से गुजर रहे हैं| कुछ खास समस्याएं इस प्रकार है-

1- ईटिंग डिसऑर्डर- बहुत से मामलों में देखा गया है,कि बच्चे टेंशन मे होने पर या तो बहुत अधिक खाने लगते हैं या बिल्कुल खाना पीना छोड़ देते हैं| इस तरह के इटिंग  डिसऑर्डर अक्सर लड़कियों में पाए जाते हैं| ऐसा कई बार बॉडी इमेज को लेकर होता है| लड़कियां एक खास उम्र में अपने शरीर को शेप में रखने के लिए काफी प्रेशराइज रहती हैं |इनमें बुलिमिया नर्वोसा और एनोरेक्सिया नर्वोसा बेहद कॉमन मानसिक और शारीरिक समस्या कही जा सकती है|

2- पर्सनैलिटी डिसऑर्डर- बहुत से बच्चों में युवावस्था से पहले यानी टिन एज  में स्वभाव में बहुत परिवर्तन आता है| अपने स्वभाव के विपरीत वे लोग बहुत अधिक गुस्सा करना ,लड़ाई झगड़ा करना ,बात बात पर चिढ़ जाना ,मारपीट करना आदि बहुत आम बात  हो जाती है| ये सभी पर्सनालिटी डिसऑर्डर के लक्षण है|

3- मूड डिसऑर्डर- यह बहुत कॉमन मानसिक समस्याएं है |जहां कम उम्र से ही स्ट्रेस के चलते बच्चों में मूड डिसऑर्डर की परेशानी देखी जाती है |बच्चे कभी तो बेहद उदास हो जाते हैं और कभी बहुत अधिक हाइपरएक्टिव नजर आते हैं| डिप्रेशन ,उदासी, नाराजगी आदी  बच्चों में आजकल आम समस्या है|

4- एंजायटी डिसऑर्डर- आजकल बहुत से बच्चों को एंजायटी डिसऑर्डर होता है| उन्हें तरह-तरह के डर घेरने लगते हैं | टीन एज में अभी यह डर खुलकर सामने नहीं आते हैं, लेकिन मन ही मन बच्चे पढ़ाई, करियर या किसी खास मामले में उसका शिकार हो जाते हैं|

5- किसी तरह का नशा करना- एडिक्शन यानी नशा भी एक मानसिक समस्या है| जिसके चलते बच्चे कम उम्र में ही सिगरेट शराब या ड्रग के आदी हो जाते हैं|चुकी बच्चों की सोचने समझने की शक्ति बहुत ही कम होती है यही वजह है कि नशा आसानी से अपने कंट्रोल में कर लेता है|

मानसिक स्वास्थ्य से जूझ रहे बच्चे में नजर आने वाले लक्षण-

टीनएज उम्र का वह पढ़ाव होता है ,जब बच्चे का मानसिक और शारीरिक विकास तेजी से होता है |इस दौरान बच्चे शारीरिक और मानसिक रूप से बहुत तेजी से बदलते हैं |कुछ बदलाव प्रकृति दत्त होते हैं जो लगभग सभी के साथ होते हैं, तो कुछ बदलाव आसपास के माहौल की वजह से होते हैं |एस अ पेरेंट्स   आप लोग बच्चे के बदलते व्यवहार को लगातार अब्जॉर्ब करके यह जानने की कोशिश करें, कि बच्चा कहीं किसी मानसिक समस्या से तो नहीं जूझ रहा है| यह पता लगाना बेहद आसान है ,बस जरूरत है कि आप अपने बच्चे की हरकतों और लक्षणों को पेनी नजर से देखें |यदि आपको निम्न में से कोई भी लक्षण नजर आता है तो बिना देर किए तुरंत ही अपने घर के माहौल में परिवर्तन लाए या तुरंत किसी एक्सपर्ट की सलाह लें|

1- बहुत अधिक थकान महसूस करना या जरूरत से ज्यादा एक्टिव रहना|

2- बहुत अधिक सोना या बिल्कुल ना सोना

3- बहुत अधिक भूख लगना या बिल्कुल भी भूख न लगना

4- हर समय उदास रहना 

5- एकाग्रता की कमी

6- खुद को मेंटली लो फिल करना

7- बेवजह घबराहट महसूस करना

मानसिक समस्याओं से बचाव और इलाज-

वर्तमान समय में हमारे पास इंटरनेट जैसा साधनों होने से हर तरह की जानकारी हमारे मात्र एक क्लिक की दूरी पर है |अपने ज्ञान का विस्तार कर खुद में बदलाव लेकर आए ताकि बच्चों की परवरिश में कोई कमी ना रह जाए|

1- एक अच्छे रोल मॉडल बने- भगवान ने मनुष्य को अन्य कार्यों को कॉपी कर कर सीखने के लिए प्रोग्राम किया है| अपने आसपास की दुनिया को देखकर बच्चे कॉपी कर कर जल्दी सीखते हैं| उन्हें यह न बताएं कि उन्हें क्या करना है ,बल्कि वह काम करें जो आप चाहते हैं कि आपके बच्चे भी करें| अपने बच्चे का आदर करें उन्हें सकारात्मक व्यवहार और रवैया दिखाए| अपने बच्चे के प्रति अपने दिल में एक सॉफ्ट कॉर्नर रखें आपका बच्चा भी आपको देखकर यही सब फॉलो करेगा|

2- अपना प्यार खुल कर जताऐ- हर माता-पिता अपने बच्चे से बेहद प्यार करते हैं |उस प्यार का कोई मोल नहीं है |मगर यह भी जरूरी है कि आपका प्यार भौतिक ही ना बना रहे |जब आप अपने प्यार के नाम पर उन्हें सुख सुविधाओं से सराबोर करते हैं, तो असल में आप उन्हें प्यार नहीं जता रहे हैं वरना उन्हें बिगाड़ने का काम कर रहे हैं |अपने बच्चों को प्यार से गले लगाए| उनके साथ समय बिताएं |उनकी बातों को ध्यान से सुने "अपने जीवन में उन्हें प्राथमिकता पर रखें |बच्चों से फिजिकली टच में रहकर ऑक्सीटोसिन नामक हार्मोन रिलीज किया जा सकता है |यह न्यूरोकेमिकल हमे शांत ,भावनात्मक ऊष्मा और संतोष की गहरी  भावना प्रदान कर सकते हैं| इन के माध्यम से बच्चा भावनात्मक लचीलापन विकसित करेगा और आपके साथ उसके संबंध प्रगाढ़ होंगे|

3- भावनात्मक रूप से जुड़े- बच्चे के साथ भावनात्मक जुड़ाव उनके व्यक्तित्व को आकार देता है| उनके उज्जवल भविष्य का निर्धारण करता है| हमारे जीवन के सकारात्मक अनुभवों का लाभ हम अपने बच्चों को लेकर उनके अनुभव को सुखद बना सकते हैं |बच्चों के साथ चुलबुले गीत गाना ,कहानियां पढ़ना, दोडना झूठ मुठ की लड़ाई आदि  आपको भावनात्मक रूप से अपने बच्चे के करीब लेकर आएंगे |ये सकारात्मक अनुभव आपके बच्चे के दिमाग को विकसित करने के साथ-साथ अच्छी यादों को भी जन्म देते हैं|

4- बच्चों को सुरक्षित वातावरण दे- अपने बच्चों को हमेशा बताएं चाहे कैसी भी परिस्थिति हो आप सदैव उनके साथ ही है| उनके मन में चल रहे विचारों के प्रति आप भी संवेदनशील है| उन्हें हर तरह से आप समर्थन प्रदान करेंगे |इस तरह की भावनाओं से बच्चे के मन में ना सिर्फ सामाजिक सौहार्द बल्कि परिवार के प्रति लगाव उत्पन्न होता है और यह उनकी शारीरिक मानसिक विकास में बेहद मददगार साबित होता है|

5- अपने बच्चे से बातें करें- अपने बच्चे से बातें करें| उन्हें ध्यान से सुने| ऐसा करने से आप दोनों के मध्य बेहतर संबंध स्थापित होंगे |ऐसे में बच्चा कभी भी किसी समस्या का शिकार होने पर पहले आपके पास अपनी समस्या को लेकर आएगा |और आप समय रहते उसकी समस्या का हल कहीं बेहतर तरीके से कर पाएंगे|

मानसिक परेशानी से जूझ रहे बच्चों के साथ कैसा व्यवहार न करें-

1- यदि आपका बच्चा किसी मानसिक विकार से पीड़ित हो तो उसे डांटे मारे नहीं| ऐसी परिस्थिति में उसका अपने खुद पर कोई नियंत्रण नहीं रहता है|

2- कभी भी उसके मानसिक विकार को लेकर दोस्तों या परिवार जनों के बीच किसी तरह की कोई बात ना करें|

3- बच्चे को कभी भी बंद करने की या सबसे अलग करने की कोशिश ना करें|

4- बच्चे की स्थिति को देखकर अनावश्यक रूप से घबराए नहीं| हर समस्या का इलाज संभव है|

5- बिना डॉक्टर की सलाह के कभी कोई भी दवा ना दे|

6- बच्चे पर कभी भी कोई शारीरिक या मानसिक दबाव ना बनाएं|

कुछ बच्चे सख्त और जिद्दी होते है,तो कुछ बच्चे शर्मीले और खामोश स्वभाव के होते हैं |उन्हें उन बातों से प्रभाव पड़ता है कि उनके माता-पिता उनके साथ कैसा व्यवहार करते हैं| सभी तरह के बच्चों को अच्छी परवरिश की जरूरत होती है |अपने बच्चे को ढेर सारा प्यार दे |उनसे बातें करें| उनके पोषण का संपूर्ण ध्यान रखें |उन्हें मानसिक खेलों में व्यस्त रखें |अगर बच्चा अपने मन की भावनाओं को आपसे कहना चाहे तो ध्यान से उसकी बातों को सुने| इन सब समस्याओं में कई बार प्रोफेशनल के बजाय माता पिता का प्यार ही उनका इलाज होता है|


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