Bharat mein Breast Cancer ki recovery rate kya hai? -भारत में स्तन कैंसर की उत्तरजीविता दर क्या है ?

भारत में स्तन कैंसर की उत्तरजीविता दर क्या है ?

पार्थी के घर आज मातम पसरा हुआ था, सब ओर से रोने की आवाजें आ रही थीं, परंतु छः साल की मासूम को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। असमंजस की स्थिति में वो अपने भैया से लिपट गयी। भाई जो कि केवल मात्र नौ साल का था परंतु मृत्यु को समझने में अपनी बहन से अधिक समझदार था। पार्थी और पार्थ की माँ आज सुबह तड़के छः माह के इलाज के बाद स्तन कैंसर से जंग हार गयी थी। 

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भारत में रोजाना स्तन कैंसर से मरने वाली स्त्रियों की मौत बढ़ती जा रहीं हैं। इनका मृत्यु दर जीवित शेष दर के अनुपात में कहीं अधिक है। आइए पहले हम समझते हैं कि ये स्तन कैंसर होता क्या है--


स्तन कैंसर 


स्तन कैंसर यानी ब्रेस्ट कैंसर। स्तन कैंसर की शुरुआत तब होती है, जब स्तन में कोशिकाओं का विकास असाधारण रूप से हो जाता है। ये कोशिकाएं आमतौर पर एक ट्यूमर बन जाती हैं, जिसे अक्सर एक्स-रे में देखा जा सकता है या फिर एक गांठ के रूप में महसूस किया जा सकता है।


कहा जाता है कि स्तन कैंसर को समझ पाना या महसूस करना आसान है परंतु यह कहीं अधिक मुश्किल होता है जब स्त्री की आयु पच्चीस से तीस साल के बीच में होती है। उस समय एक भारतीय स्त्री अपने घर गृहस्थी के सपने बुन रही होती है। भारत में हर ४ मिनट में एक स्त्री स्तन कैंसर से निरूपित (diagnosed) की जाती है और हर १३ मिनट में एक स्त्री इस कैंसर से मृत्यु का ग्रास बन जाती है।

इसी कारण से यह कैंसर भारतीय स्त्रियों में सबसे प्रचलित रूप ले रहा है। भारतीय स्त्रियों में स्तन कैंसर का निरूपण बहुत बाद में हो पाता है इसी दोष के कारण इसका निदान कर पाना मुश्किल और कभी कभी असंभव हो जाता है। एक सर्वे के मुताबिक हर अट्ठासवीं में एक स्त्री अपने जीवन काल में स्तन कैंसर से ग्रसित होती है।


एक और सर्वे के अनुसार पिछले पांच सालों में अमेरिका में स्तन कैंसर का जीवित शेष दर ९०% वहीं भारत में यह दर घट कर केवल ६६% है। २०३० तक भारतीय स्त्रियों की स्तन कैंसर से मृत्यु दर बाकी रोगों के अनुपात में कहीं अधिक होगी।


मुख्य रूप से कुछ कारण हैं जो स्तन कैंसर के मुख्य कारक माने जाते हैं 


ब्रेस्ट कोशिकाओं का विकास होना- जब किसी महिला के स्तन की कोशिकाओं का विकास असामान्य रूप से हो जाता है, तो यह स्तन कैंसर का कारण बन सकता है।


हार्मोनल बदलाव होना- कुछ महिलाओं में स्तन कैंसर का कारण उनके शरीर में होने वाले हॉर्मोन बदलाव हो सकते हैं।


अनियमित जीवन शैली का होना- स्तन कैंसर का प्रमुख कारण जीवन शैली का अनियमित होना भी हो सकता है।


अधिक वजन होना- जिस महिला का वजन अधिक होता है, उसमें स्तन कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है, क्योंकि अधिक वजन ब्लड शुगर लेवल को प्रभावित कर सकता है।


उच्च कैलोरी होना- जो महिला अधिक मात्रा में कैलोरी का सेवन करती है, उसे स्तन कैंसर हो सकता है।


कुछ और भयावह तथ्य हैं जो स्तन कैंसर से होने वाली मृत्यु दर को प्रभावित करते हैं। लगभग ५०% महिलाएं कैंसर की तीसरी स्टेज पर अपना इलाज करवाने डॉक्टर के पास जाती हैं और वहीं पर १५-२०% अपने चौथे स्टेज में इलाज के लिए जाती हैं। 


२०२० करोना काल ने इस स्थिति को और भी भयावह और चिंताजनक स्थिति में पहुंचा दिया। जब लॉकडाउन के दौरान हर तरह की सर्जरी पर रोक लगा दी गयी। एक सर्वेक्षण के अनुसार उन बारह सप्ताह में ५९•७% सर्जरी होनी प्रस्तावित थीं जो की स्थगित कर दी गयीं। जिनमें से लगभग हर तरह के केस के ५०% केस २५-५० आयु वर्ग की महिलाएं थीं। असामान्य रूप से युवाओं में जड़ें फैलाने वाला ये कैंसर चिंताजनक और भयावह रूप ले चुका है। तीस से चालीस साल की आयु की महिलाओं में ये कैंसर जड़ें मजबूत करता जा रहा है। 

इसके साथ ही एक चौंकाने और सबसे भयानक तथ्य ये भी है ट्रिपल निगेटिव स्तन कैंसर में भारत पूरे विश्व में उच्चतम स्थान पर है। 


कुछ चुनौतियां जैसे महंगी चिकित्सा पद्धति और भारत में रेडियोलॉजिस्ट की कमी ( लगभग हर एक लाख लोगों के लिए एक रेडियोलॉजिस्ट उपलब्ध है) स्थिति को भयावह बना देती है। भारत में स्तन कैंसर की जीवित शेष दर कम का प्रमुख कारण सही निरूपण में देरी है। इन आंकड़ों को कम करने के लिए लोगों में सही जागरूकता फैलाना ही एकमात्र उपाय है। स्तन कैंसर का इलाज संभव है अगर सही समय पर इसका निरूपण किया जाए। यह तभी संभव हो पाएगा जब लोगों को ये समझाया या बताया जाए कि इसके प्रारंभिक लक्षण क्या हैं और उनका समय से समझ कर निरूपण कराया जाए। २०२० की वर्ल्ड कैंसर रिपोर्ट के अनुसार समय पर निरूपण तथा इलाज जीवित शेष दर को बढ़ाने में एक सकारात्मक तथा उचित कदम है। स्त्रियाँ प्रारंभिक तौर पर इसे नजरअंदाज कर देतीं हैं क्योंकि उनको गांठ में किसी भी प्रकार की दर्द महसूस नहीं होती। २०-३० वर्ष की महिलाओं का क्लिनिकल स्तन परीक्षण ( Clinical Breast Exam-CBE) प्रशिक्षित डॉक्टर द्वारा हर तीन साल के अंतराल में होना चाहिए और हर ४० या उससे अधिक आयु की महिलाओं का हर साल यह परीक्षण होना चाहिए। अल्ट्रासाउंड परीक्षण वार्षिक चिकित्सकीय परीक्षण का हिस्सा होना आवश्यक है। जिन महिलाओं के परिवार में स्तन कैंसर का इतिहास है या किसी को हो चुका है उनका कुछ के अंतराल पर मैमोग्राफी करवाते रहना चाहिए तथा नियमित रूप से स्व निरीक्षण करते रहना चाहिए जिससे गांठ में होने वाले बदलाव या दर्द को महसूस कर समय पर निरूपण करा सकें। 


स्तन कैंसर को एक जरूरी स्वास्थ्य मुद्दा स्वीकार करते हुए उसके प्रति जन मानस तक जानकारी पहुंचाना इसके रोकथाम में भारत का पहला कदम होगा। स्त्रियों के वक्ष स्थल के बारे में बात करने पर सामाजिक असहजता इस विषय को और भी गंभीर परिस्थिती में पहुँचा रही है, स्त्रियाँ खुद भी इस विषय में जानकारी लेने या बात करने से कतराती हैं, उन्हें ये पता ही नहीं होता कि उनके वक्ष की संरचना कैसी है अंदाज़ ये कैंसर कैसे विकसित होता है। कैंसर एक ऐसी बीमारी है जो न केवल रोगी वरन उसके पूरे परिवार को भावनात्मक और आर्थिक तौर पर ग्रस्त करती है। यह एक इतना महंगा इलाज है जिसके कारण गंभीर आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ सकता है।


समय पर रोग सही निरूपण ही इसके महंगे इलाज से बचा सकता है। ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि किसी विशेषज्ञ से इलाज कराया जाए। यह भारत के ग्रामीण और बहुत हद तक शहरी समाज की विडम्बना है कि यह किसी भी रोग का इलाज विशेषज्ञ से न करवा कर किसी भी कम प्रशिक्षित डॉक्टर से करवा लेते हैं, जोकि स्थिति को गंभीर बना देता है और समय से सही इलाज के अभाव में अधिकतर मृत्यु हो जाती है।


सर्वेक्षण के अनुसार भारतीय महिलाओं की एक और प्रमुख आदत या धार्मिक और सामाजिक सोच के चलते वो अपने रोगों या तकलीफ़ों पर ध्यान नहीं देतीं और पुरुष डाॅक्टर से इलाज करवाने में भी कतरातीं हैं। वो अक्सर अपना इलाज कराने के लिए अपने घर के बाकी सदस्यों पर निर्भर रहती हैं या फिर घर के कामों में वह खुद की समस्या को दरकिनार कर देतीं हैं जिसका नतीजा देरी से निरूपण स्थिति और खतरनाक बना देता है। 


भारत एक पितृसत्तात्मक समाज है। हालांकि स्त्रियाँ आत्मनिर्भर हो रहीं घर चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं परंतु आज भी वह अपनी निजी परेशानियों को अपने पिता या पति से साझा करने में असहजता महसूस करती हैं। 


समाधान


समस्याएं हैं तो समाधान भी होंगे बस समझने और सोचने भर की देरी है। तथ्यों और जानकारी के हिसाब से जिन समाधानों के निष्कर्ष तक पहुँचा जा सकता है, वो निम्नलिखित सूचीबद्ध तरीके से समझाने की कोशिश की जा रही है


जागरूकता


स्तन कैंसर के लिए जागरूकता अभियान चलाना चाहिए। बहुत से सेवा संस्थानों तथा सरकारी संगठनों को मिल कर उसके उपाय और उनके कार्यनवण पर काम करना चाहिए। महिला प्रशिक्षित डॉक्टर की नियुक्ति की जाए जिससे स्त्रियां अपनी समस्याएं उनसे खुलकर बता सके और उसका समाधान और उपचार भी जान सके। अगर इस में समय का अभाव है तो ग्रामीण और शहरी इलाकों में प्रशिक्षित नर्सों की नियुक्ति की जाए।


योग


आजकल की भागदौड़ वाली अनियमित जिंदगी को नियमित योग से कुछ हद तक संवारा जा सकता है। योग न केवल शरीर और मन को स्वस्थ रखने का काम करता है वरन आपके अंदर होने वाले हारमोनल इंबैलेंस को नियंत्रित करने में भी सहायक होता है। 


व्यायाम 


आजकल के परिवेश में जिम बहुत प्रचलित माध्यम है व्यायाम का और बहुत से मल्टीनेशनल कंपनियों में यह सुविधा आपको काम के साथ भी दी जाती है। 


स्वस्थ स्त्री ही स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकती है



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