Pregnancy mein kitna gap hona chahiye - पहली और दूसरी प्रेगनेंसी के बीच कितना गैप होना चाहिए

 पहली और दूसरी प्रेगनेंसी के बीच कितना गैप होना चाहिए-


स्त्री के जीवन का सबसे मूल्यवान उपहार होता है - संतान की प्राप्ति। क्योंकि हर स्त्री इस दिन का बेसब्री से इंतजार करती है और उसके आने के खबर मिलने से और उसे संसार में लाने तक हर दिन  वह अपने सपनों को बुनना शुरू कर देती है क्योंकि उसे उस दिन एक नया जीवन मिलता है,

हजारों सपने उसके आंखों के सामने प्रकट हो जाते हैं क्योंकि एक स्त्री जब मां बनती है तब उसके मन में हजार सवाल होते हैं कि वह अच्छी मां बन पाएगी या नहीं, वो बच्चों को अच्छे संस्कार दे पाएगी या नहीं, क्योंकि मां और बच्चे का कनेक्शन उसी दिन जुड़ जाता है जब बच्चा मां की कोख में होता है और हो भी क्यों न हो वह उसका एक हिस्सा होता है जिसके लिए वह हर तकलीफों का सामना हंसते हुए कर लेती है, मां बनने की खुशी हर महिला को होती है, इसलिए जब एक स्त्री दोबारा मां बनने की सोचती है तो उसे और अधिक सावधानी बरतने की जरूरत है और उसे पता होना चाहिए कि एक बच्चे के बाद दूसरे के बारे में सोचना कभी कभी रिस्की हो सकता है इसलिए डाक्टर की सलाह और अपनी सेहत को देखते हुए निर्णय करना चाहिए और साथ ही सबसे पहले यह जानना अति आवश्यक है कि पहली प्रेगनेंसी और दूसरी प्रेगनेंसी के बीच कितना गैप होना  चाहिए और साथ ही यह क्यों आवश्यक है साथ ही इसके क्या फायदे हैं और क्या यह पहली प्रेगनेंसी के लक्षण की तुलना में अलग होती है,


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 कुछ कारक ऐसे हैं जिनके बारे में आपको  दूसरे बच्चे को रखने के बारे में सोचने से पहले विचार करना चाहिए


  1.आयु प्रजनन क्षमता - आयु और प्रजनन क्षमता एक दूसरे के विपरीत आनुपातिक है जितने ज्यादा कपल्स की उम्र होती है उतनी ही कम फर्टियल होते हैं इसलिए दूसरे बच्चे के बारे में सोचने से पहले एक बार विचार करना चाहिए।

 

 2. वित्तीय स्थिति - एक बड़ा अंतर एक बेहतर तरीके से खर्चे को दूर करने में मदद करता है।

 

  3. आयु प्रताप - भाई बहनों के बीच उम्र का अंतर पेशेवरों और विपक्षों का अपना हिस्सा है।

 

 4. पिछली सेवा - पहली प्रेगनेंसी के बाद महिला का शरीर पूर्ण रूप से कमजोर हो जाता है और ऐसे में दूसरी प्रेगनेंसी के बारे में सोचने से पहले अपनी सेहत के बारे में भी सोचने की जरूरत है क्योंकि जल्दबाजी का नुक़सान मां और बच्चे दोनों के लिए हानिकारक हो सकता है। 


  5. बड़ी उम्र के बच्चे के साथ इत्यादि कारणों के बारे में सोचने के बाद भी कोई निर्णय लेना चाहिए।


  6. भावनात्मक तैयारी - जब हम दूसरे बच्चे के बारे में प्लानिंग करते हैं तो सबसे पहले भावनात्मक रूप से तैयार होना बहुत जरूरी है।



क्योंकि  दूसरी बार मां बनने का एहसास पहली बार मां बनने के एहसास से अलग होता है क्योंकि कुछ बातों के बारे में आपको पहले से पता होता है इसलिए दूसरी बार मां बनने के लक्षण पहली बार मां बनने की तुलना में अलग होते हैं जैसे - 


1. पेट जल्दी बाहर निकलना - पहली गर्भावस्था की तुलना में पेट की मांसपेशियां कमजोर हो जाती है पहली डिलीवरी के दौरान इनमें पहले ही खिंचाव आ चुका होता है दूसरी प्रेगनेंसी में पेट की मांसपेशी कम प्रतिरोध होती है और शिशु के बढ़ने के साथ ही पेट जल्दी बाहर आ जाता है।


2.  संकोच महसूस होना - पहली बार की तुलना में सेकंड प्रेगनेंसी में संकुचन जल्दी महसूस हो सकता है।


3. स्तनों में बदलाव - गर्भावस्था के दौरान ब्रेस्ट में बदलाव आना सामान्य बात है लेकिन दूसरी गर्भावस्था में ब्रेस्ट को छूने में दर्द होता है स्तनपान के दौरान ये ज्यादा संवेदनशील हो जाती है और निप्पल में भी ज्यादा दर्द हो सकता है।


4. यूटराइन मसल्स कमजोर होना - गर्भाशय की मांसपेशी अपनी मजबूती खो देती है और हो सकता है कि अब वो पहले प्रेगनेंसी की तरह न हो यह भी हो सकता है कि यूटराइन मसल्स शिशु को पहले गर्भाशय की तरह पोस्ट न करें और शिशु पेट के निचले हिस्से में चला जाए।


5. डिलीवरी टाइम कम होना


6. स्तनपान आसानी से हो जाता है - क्योंकि पहली प्रेगनेंसी में आपको पता चल जाता है तो दूसरी प्रेगनेंसी में कोई दिक्कत नहीं होती और स्तनपान आसानी से हो जाता है।


7. डिलीवरी के बाद पेट में दर्द - क्योंकि पहले प्रेगनेंसी के बाद दूसरी प्रेगनेंसी में गर्भाशय बड़ा हो जाता है इसलिए उसमें संकुचन के दौरान दर्द अधिक महसूस होता है।


8. गर्भाशय में कमर का दर्द - गर्भाशय बढ़ने के साथ-साथ कमर में दर्द भी बढ़ सकता है दूसरी प्रेगनेंसी में पेट जल्दी बाहर निकलने के कारण कमर में दर्द हो सकता है।


9. भ्रूण का हिलना - दूसरी गर्भावस्था में शिशु जल्दी किक व मूव कर सकता है।

 तथा इसके साथ ही यह जानना अति आवश्यक है कि पहले प्रेगनेंसी के बाद महिलाओं को दूसरी प्रेगनेंसी के बीच कितना गैप होना चाहिए

  

   तो विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार आपके पहले और दूसरे बच्चे के बीच 24 महीने का गैप होना चाहिए इस प्रकार से मां का शरीर पहले प्रेगनेंसी से पूरी तरह तक ठीक हो जाता है क्योंकि वह अपनी पहली प्रेगनेंसी में खोए हुए पोषक तत्वों की पूर्ति करती है यदि 24 घंटे नहीं तो किसी भी मामले में 18 महीने का अंतर जरूर होना चाहिए।

   लेकिन ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि उम्र बीती जा रही है और आप दूसरे बच्चे की प्लानिंग कर रही हो क्योंकि यह आपकी सेहत के लिए भी रिस्की हो सकता है।


प्रेगनेंसी में समय लेना जरूरी है क्यों - क्योंकि अगर आप दूसरी बार मां बनने से पहले थोड़ा समय लेती है तो आपकी प्रेगनेंसी में जटिलताएं कम होने की संभावना रहती है और प्रसव के दौरान होने वाली संभावना घट जाती है अगर आप दूसरी बार गर्भधारण करने में 6 महीने का अंतर रखती है  समय से पहले जन्म और बच्चे के वजन कम होने की संभावना अधिक रहती है। क्योंकि 18 महीने से कम के अंतराल शिशु के बढ़ते जोखिम से जुड़े होते हैं जैसे - प्रसव पूर्व जन्म, वजन कम,  उनकी गर्भकालीन आयु के लिए छोटा आकार इत्यादि शामिल हैं।


प्रेगनेंसी में अधिक समय रखने के फायदे - 


 1.यदि आप पहले प्रेगनेंसी के बाद दूसरी प्रेगनेंसी के लिए थोड़ा सा समय रहता है तो आप प्रत्येक बच्चे के साथ अच्छा टाइम बिता सकती है।

 

 2. स्वयं ही बड़ा बच्चा दूसरे बच्चे की जिम्मेदारी संभालने में आपकी मदद कर सकता है। और साथ ही आपको अधिक थकान महसूस नहीं होगी।


3. क्योंकि आप एक ही समय में दोनों शिशु का ध्यान नहीं रख सकती इसलिए आपको गैप की अधिक आवश्यकता होती है।


 4. और अगर दोनों बच्चों में अंतर रहेगा तो बड़े बच्चे को संभालने में आपको ज्यादा समय नहीं लगेगा।


 5. क्योंकि दोनों बच्चे में कम अंतर होने के कारण मां की सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है साथ ही बच्चे को भी खतरा हो सकता है। इसलिए डॉक्टर द्वारा हमेशा महिला व उसके परिवार को यह सलाह दी जाती है कि वह कम से कम अपनी प्रेगनेंसी के बीच 18 महीने का गैप जरूर रखें क्योंकि पहले प्रेगनेंसी के बाद महिला की गर्भाशय की  मांसपेशी अपनी मजबूती खो देती है।

इस प्रकार, इन कुछ कारणों से आपको अपने पहले बच्चे और दूसरे बच्चे के बीच एक अंतर होना चाहिए, क्योंकि यह बच्चे के साथ-साथ माँ के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करता है।


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