Female Teens mein achchhe maanasik svaasthy ko badhaava kaise de? - किशोरियों में अच्छे मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देना

वसाद से ग्रस्त होने की कोई उम्र नहीं होती है। हाँ हम में  अनभिज्ञता आवश्यक है इससे जुड़े लक्षणों व कारणों के बारे में ।आजकल डिप्रेशन शब्द सर्वव्यापी हो चला है और इससे जूझने वालों की तादाद भी बढ़ती जा रही है। 'मानसिक स्वास्थ्य', एक ऐसे विषय के समान है जिसके बारे में सतही ज्ञान होना एक आम बात है, परन्तु इसकी गहराई तक जानकारी होना दुर्लभ है। मानसिक स्वास्थ्य का संबंध हमारे मस्तिष्क से होता है। मस्तिष्क एक ऐसा जटिल अंग है जो अन्य अंगों की तुलना में ज्यादा परिपक्व होता है। इसका 'स्वास्थ्य' निश्चय ही हमारे व्यक्तित्व में गहरा प्रभाव डालता है। हमारे शरीर की कार्य करने की क्षमता इस पर निर्भर करती है। 


डिप्रेशन एक ऐसी अवस्था है जहाँ हम तनाव या निराशा से घिरे रहते हैं।  अक्सर तनाव, डिप्रेशन, बाइपोलर डिसऑर्डर आदि शब्दों से हम रूबरू होते हैं। यह देखने में काफी आम लगते हैं। पर इसके नकारात्मक प्रभाव पर गौर फरमाने की तकलीफ कम ही उठाई जाती है। इनसे लंबे समय तक जूझने वाले इंसान अपनी सोच,भावनाओं, व्यवहार आदि में बदलाव या उतार-चढ़ाव महसूस कर सकता है।

Female Teens mein achchhe maanasik svaasthy ko badhaava kaise de? - किशोरियों में अच्छे मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देना


किशोरावस्था पर डिप्रेशन का प्रभाव:


किशोरावस्था शारीरिक के साथ-साथ मानसिक स्तर पर भी बदलाव लाती है। इस उम्र में अपने साथी संगी से प्रतिस्पर्धा होती है, रिश्तों में उतार चढ़ाव आते हैं, दुनियादारी से साझा होने का समय शुरू होता है। लंबे समय तक दुखी रहना, बुरा महसूस करना,बात बात पर चिढ़ ना,नींद पूरी न कर पाना आदि प्रमुख लक्षणों में आते हैं। किशोरावस्था ऐसा समय होता है जिसमें परिवार का भरपूर सहयोग अनिवार्य है अन्यथा अकेलापन विकसित हो रहे एक व्यक्तित्व को हानि पहुंचा सकता है।

वैसे तो डिप्रेशन किसी भी आयु या लिंग को प्रभावित करता है परन्तु आजकल महिलाओं में पनप रहे डिप्रेशन, खासकर किशोरियां इससे जूझ रही हैं जो कि चिंता का विषय है। आइए देखते हैं एक विवेचना निहित कारणों की:

वैसे तो बायोलॉजिकल कारक जैसे हार्मोनल बदलाव कभी वंशानुगत कारण या निजी समस्याओं से डिप्रेशन जैसी समस्या पनपने लगती है। कहा जाता है जीवन में चार में से एक महिला इससे जूझती है। यह एक गंभीर मूड डिसऑर्डर है। किशोरावस्था में इमर्जिंग सेक्शुअलिटी और आइडेंटिटी इश्यू की समस्या होना भी डिप्रेशन से जुड़ा होता है। कुछ और लक्षण ऐस प्रकार हैं:

  • अक्सर कहासुनी होना
  • अकेले में समय व्यतीत करना
  • कम सोना
  • कार्यों में अरूचि
  • भावनात्मक संबंधों में ठेस लगने से दुखी होना या रहना
  • भूख में कमी
  • आशा खो देना
  • कभी-कभी ज्यादा खाने से वजन बढ़ना
  • देर रात तक नींद न आना
  • बिना परिश्रम के भी थका रहना
  • क्रोनिक पेन
  • कोई निर्णय लेने में असमर्थता

भारत जैसे देश में डिप्रेशन तेजी से किशोरों को अपनी गिरफ्त में ले रहा है। इसकी कई वजहें हो सकती हैं, जैसे कि:

  • .शिक्षा का दबाव 
  • .रोजगार की समस्या 
  • .अकेलापन 
  • .रिलेशनशिप से जुड़ी समस्या 
  • .घरवालों की उम्मीदें पूरी करने का दबाव 
  • .अकेलापन 


ऐसी समस्याओं पर खुल कर बात करने से समाधान ढूंढा जा सकता है। किशोरों को डिप्रेशन से बचाने के लिए कुछ उपाय: 

  • . परिवार के साथ अधिक समय बिताना
  • .व्यायाम करना/ध्यान करना
  • .एकाग्रता बढ़ाने की कोशिश 
  • .अल्कोहोल और ड्रग्स से दूरी
  • .ढेर सारी नींद लेने की कोशिश 
  • .नकारात्मक संगति से दूर रहने की कोशिश 
  • .भोजन में पौष्टिकता को प्राथमिकता 
  • .रुचि का ध्यान रखना


किशोरावस्था में माँ-बाप हर परिस्थिति में मार्गदर्शक बन सकते हैं। अगर आपके बच्चे में ऐसी समस्या है तो उसको नजरअंदाज बिल्कुल न करें। उचित परामर्श आपके बच्चे को इस समस्या से निकाल सकता है इसलिए काउंसलिंग से बिल्कुल न करें। आइए काउंसलिंग के बारे में जानें:




इस थेरेपी में मनोचिकित्सक एवं 'क्लाइंट' की भूमिका होती है। क्लाइंट वो होता है जो मनोचिकित्सक लेता है। इसे साधारण भाषा में काउंसलिंग कहा जा सकता है। यह एक बातचीत के समान होता है जहाँ क्लाइंट की बुनियादी समस्याओं का जिक्र होता है। उसके विचारों को समझा जाता है। उसकी सोच को परखा जाता है। इस वार्तालाप को गोपनीय रखा जाता है ताकि उसकी भावनाओं एवं विश्वास को ठेस न पहुंचे। यह कभी किसी तीसरे को बताया नहीं जाता।

मनोचिकित्सा क्लाइंट की जरूरतों के हिसाब से वर्गों में बांट दी गई है। जानते हैं इसके प्रकार के बारे में:

 कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी

इस प्रक्रिया के अंतर्गत नकारात्मक विचारों को काबू में लाने की पहल की जाती है। क्लाइंट को बताया जाता है कैसे अपने अंदर एक सकारात्मक ऊर्जा का प्रस्फुटित की जाए। यहाँ डिप्रेशन,तनाव,डिसऑर्डर आदि को ठीक करने की कोशिश की जा सकती है।क्लाइंट सेंटर्ड थेरेपी 

यहाँ क्लाइंट के लिए एक वातावरण बनाया जाता है जिससे उसके व्यक्तित्व का सकारात्मक विकास हो सके। यहां नशे की लत,पर्सनैलिटी डिसऑर्डर पर जोर दिया जाता है।


बिहेवियर थेरेपी

इसके अंतर्गत ऐसे व्यवहार या आदतों पर काबू पाने की कोशिश की जाती है जो एक व्यक्तित्व में नकारात्मक प्रभाव को भर सकते हैं। ऐसी आदतों से छुटकारा पाने के तरीके बताए जाते हैं। चिंता,डर,पैनिक अटैक आदि को यहाँ ठीक करने का लक्ष्य लिया जाता है। 


फैमिली थेरेपी

यह थेरेपी किसी व्यक्ति विशेष पर केन्द्रित न होकर एक पूरे परिवार पर ध्यान देती है। हो सकता है सदस्यों में मनमुटाव हो या एक दूसरे के बीच आपसी सामंजस्य की कमी है या कुछ अनसुलझी समस्या जिस पर बातें न हो पा रही हो। इन परेशानियों के समाधान के लिए यह थेरेपी उपयुक्त है।


शोधकर्ताओं ने पाया है कि लगभग 40% किशोर किसी न किसी रूप में डिप्रेशन के शिकार हैं। वही 3.7% किशोर  डिप्रेशन की गंभीर स्थिति से जूझ रहे हैं। डिप्रेशन की वजह भी बदलती रहती है। घरेलू झंझट, तिरस्कार,मतभेद आदि किशोरियों में तनाव की स्थिति अधिक उत्पन्न करते हैं । एकाग्रता की कमी व कभी-कभी आत्महत्या के विचार भी प्रबल होने लगते हैं। चाइल्ड माइंड इंस्टीट्यूट के मुताबिक़  डिप्रेशन का शिकार हो रहे लोगों में 13 से 17 वर्ष के किशोरों की तादाद 14.3% है। एक शोध के मुताबिक किशोरियों को सोशल मीडिया का अत्यधिक प्रयोग भी डिप्रेशन देता है। लंदन की यूनिवर्सिटी के शोध से पता चला 14 साल की लड़कियां सोशल मीडिया पर बहुत सक्रिय है।टीनएज लड़कियों की उपस्थिति सोशल मीडिया पर अधिक है और लड़कों से तीन घंटे अधिक सक्रिय रहती हैं। इसका असर भी मानसिक स्वास्थ्य पर होता है। ब्रिटेन की हेल्थ वेबसाइट एनएसएस च्वाइस ने बताया कि 19 साल के होने से पहले चार में से एक बच्चा डिप्रेशन में होता है। आखिर ऐसा है क्यूँ? क्या परिवार व दोस्तों से कट कर रहना किशोरों को अपने मानसिक स्वास्थ्य के लिए विपरीत परिस्थिति आमंत्रित कर रहे? 

आइए गहनता से बिंदुओं को जाने जिस पर काम करने से किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य को लाभ मिलेगा:

जरूरत से ज्यादा किसी विषय पर न सोचना:

अधिक सोचना किसी परेशानी का इलाज नहीं हो सकता अपितु परेशानियों को आमंत्रित कर सकता है। व्यक्तिगत या दफ्तर से जुड़ी किसी समस्या को खुद पर हावी न होने दें।


खानपान का प्रभाव:

'ब्रेन बूस्टर' भोजन लें। जी हाँ, इनके बारे में जानकारी होना आवश्यक है। मेंटल हेल्थ से जुड़ी चीज़ों में  हल्दी,ब्रोकली,पंपकिन सीड्स, नट्स, डार्क चॉकलेट, फैटी फिश, ब्लूबेरी आदि अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हैं। मन को दुरुस्त व स्फुरित करने में उनकी भूमिका प्रबल होती है।


मन की बात बांटे:

मनुज एक सामाजिक पशु है। अकेलापन उसकी सोच व व्यक्तित्व के लिए घातक होता है। बिना संकोच किए अपने दोस्तों व घरवालों से बात करें। हमें अपनों से सहारा लेने में कोई शर्म नहीं दिखानी चाहिए। बातें करने से हो सकता है समस्या का समाधान जल्दी मिले। 


एकाग्रता को दें प्राथमिकता:

अपने जीवन में छोटे-छोटे लक्ष्य निर्धारित करें। कार्य के संपन्न होने पर खुद को बधाई दें। खुद का दिया हुआ प्रोत्साहन आत्मविश्वास का जनक होता है। इससे आप अधिक एकाग्र हो पाएंगे जिससे मन शांत रहेगा।


तनाव प्रबंधन को अपनाएं : 

व्यायाम,टहलना, ध्यान लगाना इत्यादि तनाव को नियंत्रित करने में काफी कारगर हैं। इस भागदौड़ भरी जिंदगी में कुछ पल अपनी शांति को आवंटित करें। आपका मन स्वस्थ होगा तो तन भी स्वतः स्फूर्ति का आलिंगन कर पाएगा।

 

एक सकारात्मक रवैया रखें:

सकारात्मक रवैया किसी का बुरा न सोच कर भी अपनी आदत में शामिल किया जा सकता है। दूसरों की मदद करना एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। 


नया सीखने की इच्छा को रखें जीवित:

अपनी रूचि को तवज्जो देने के साथ-साथ अपने व्यक्तित्व को नए आयामों से भी अवगत कराते रहना चाहिए। वो कहते हैं 'खाली दिमाग शैतान का घर'। तो कुछ सीखना और उसके व्यवहार में लाना आपका बौद्धिक विकास भी करेगा। 

नींद को दे महत्व:

नींद किसी वरदान से कम नहीं। प्रतिरोधक क्षमता के विकास के साथ-साथ मानसिक स्तर पर भी पर्याप्त नींद एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चिड़चिड़ापन का स्वभाव में  होना व सोचने की क्षमता का क्षीण होना कम नींद लेने से उत्पन्न होते हैं ।


शरीर की करें हिफाज़त:

हमारा शरीर हमारे लिए किसी मंदिर से कम नहीं होना चाहिए। उसकी पौष्टिकता से युक्त भोजन और आराम का उपहार अवश्य दें। पानी भी खूब पीएं ताकि शरीर से अनावश्यक तत्व बाहर हों।

किशोरों के लिए डिप्रेशन से बचे रहने का प्रथम आवरण उनका अपना घर है। डिजिटल वर्ल्ड से अधिक वास्तविक दुनिया से उनका जुड़ाव अवसाद जैसी मुसीबतों को दूर भगाएगा। डिप्रेशन से जुड़े तथ्यों की मौलिक स्तर पर जानकारी रखना लाभकारी सिद्ध होगा।




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