Along with health problems for gay women, is it any disease that can be treated?/ समलैंगिक महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के साथ ही क्या यह कोई बीमारी है जिसका इलाज संभव हो

Along with health problems for gay women, is it any disease that can be treated?/ समलैंगिक महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के साथ ही क्या यह कोई बीमारी है जिसका इलाज संभव हो 

Along with health problems for gay women, is it any disease that can be treated?/ समलैंगिक महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के साथ ही क्या यह कोई बीमारी है जिसका इलाज संभव हो _ichhori.com

बदलती सोच बदलता परिवेश हमारी मानसिकता को बदल देता है आज समलैंगिकता यह शब्द एक विवाद बन चुका है लेकिन यह जानना अति आवश्यक है कि यह समलैंगिकता किसे कहते हैं तो सर्वप्रथम -
समलैंगिकता का अर्थ है  किसी व्यक्ति का समान लिंग के
लोगों से आकर्षित होना,
अर्थात वे पुरुष जो अन्य पुरुषों के प्रति आकर्षित होते है उन्हें सामान्यत "पुरुष समलिंगी" या गे और जो महिला किसी अन्य महिला के प्रति आकर्षित होती है उसे भी गे कहा जाता है और आमतौर पर  "महिला समलिंगी" या लेस्बियन कहा जाता है और कुछ व्यक्ति जो महिला और पुरुष दोनो के प्रति आकर्षित होते हैं उन्हें "उभयलिंगी" कहा जाता है,
अतः समलैंगिक, उभयलैंगिक और लिंगपरिवर्तित लोगो
को मिलाकर एल जी बी टी समुदाय बनता हैऔर यह बात भी ध्यान रखने योग्य है कि समलैंगिकता का अस्तित्व सभी संस्कृतियों और देशों में पाया गया है, यद्यपि कुछ देशों की सरकारें इस बात का खण्डन करती है लेकिन
आधुनिक समय में समलैंगिकता को "पश्चिमी" देशों में
स्वीकृत किया गया है और अधिकांश पश्चिमी देशों में
समलैंगिको को हिंसा और भेदभाव से बचाने के लिए कानून
भी बनाए हुए हैं,
यद्यपि बहुत से देशों में समलैंगिक भेदभाव से सुरक्षित नहीं
हैं जिस कारण एक समलैंगिक व्यक्ति को इसलिए नौकरी से
निकाला जाता है क्योंकि वह समलैंगिक है, भले ही वह
कितना अच्छा कर्मचारी क्यों ना हो साथ ही समलैंगिकों को मकान किराए पर लेने या अपनी लैंगिक प्रार्थमिकता के कारण किसी रेस्टोरेंट में खाने से भी वंचित किया जाता है,   और ज्यादातर इस्लामी देश समलैंगिक हिंसा और
भेदभाव का अनुभव करते हैं और यूनाइटेड किंगडम में तो समलैंगिकता अपराध हुआ करता था,
हालांकि यह जानने के बाद की समलैंगिकता क्या है इसके प्रकारो के बारे में और किन देशो में इसके प्रति क्या मानसिकता है यह जानने के बाद यह जानना अति आवश्यक है कि समलैंगिक महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का खतरा क्यों रहता है तो
अनुमानित प्रणाली के अनुसार समलैंगिक महिलाओं को
अनूठी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जो खराब
मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का कारण बनती हैं  हालांकि अनुमानित विवरण न होने और कई डॉक्टरों अन्य स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं के पास समलैंगिकों के विशिष्ट स्वास्थ्य अनुभवों को समझने के लिए पर्याप्त प्रशिक्षण नहीं है, कि जो महिलाएं समलैंगिक हैं या जैसे जो विषमलैंगिक महिलाएं हैं क्या वह स्वस्थ सामान्य महिलाएं हो सकती हैं या नहीं,  कि समलैंगिक महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी खतरा क्यों रहता है इसके बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है लेकिन समलैंगिक महिलाओं को कौन कौनसी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती है उसका अनुमानित विवरण इस प्रकार है-

1. ऑस्टियोपोरोसिस -

हालाकि  लाखों महिलाओं को पहले से ही ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा है और बिशेषज्ञो के अनुसार ऑस्टियोपोरोसिस का मतलब है हड्डियां का  कमजोर होना और साथ ही हड्डी टूटने की संभावना अधिक।
हालांकि समलैंगिक महिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस का अभी तक अच्छी तरह से अध्ययन नहीं किया गया है कि क्या उन महिलाओं को भी इसका खतरा है या नहीं लेकिन ध्यान रखने की आवश्यकता है,

2. यौन स्वास्थ्य -

समलैंगिक महिलाओं को विषमलैंगिक महिलाओं के समान ही कई एसटीडी होने का खतरा रहता है क्योंकि समलैंगिक महिलाएं त्वचा से त्वचा के संपर्क, म्यूकोसा संपर्क, योनि तरल पदार्थ और मासिक धर्म के रक्त के माध्यम से एक दूसरे को एसटीडी संचारित करती हैं, सेक्स टॉयज साझा करना एसटीडी प्रसारित करने का एक और तरीका है और  ये सामान्य एसटीडी हैं जिन्हें महिलाओं के बीच पारित किया जाता है

3.बैक्टीरियल वेजिनोसिस (बीवी) -

बीवी विषमलैंगिक महिलाओं की तुलना में समलैंगिक और उभयलिंगी महिलाओं में पाया गया है,
लेकिन समलैंगिक और बिषमलैगिंक महिलाओं में बहुत अंतर है जैसे  -
विषमलैंगिक महिलाओं की तुलना में समलैंगिकों का शरीर द्रव्यमान अधिक होता है और अध्ययनों से पता चलता है कि समलैंगिकों के पेट में अधिक वसा जमा होती है और उनकी कमर की परिधि अधिक होती है, जो उन्हें हृदय रोग और अन्य मोटापे से संबंधित मुद्दों जैसे समय से पहले मौत के लिए उच्च जोखिम में रखती है
इसके अतिरिक्त, कुछ बिशेषज्ञो का सुझाव है कि विषमलैंगिक महिलाओं की तुलना में समलैंगिकों को वजन के मुद्दों के बारे में कम चिंता है लेकिन इस समय इन क्षेत्रों में और अधिक शोध की आवश्यकता है,
अतः यह जानने के बाद कि इसमें कौन कौनसी बीमारी का खतरा रहता है अब यह जानना अति आवश्यक है कि क्या यह कोई बीमारी है और क्या इसका इलाज संभव है -
तो सर्वप्रथम
समलैंगिक रूपांतरण थेरेपी के उत्तरजीवी, डेविड टर्नर के
अनुसार  "समलैंगिकों का इलाज करना अर्थात उनका शारीरिक और भावनात्मक रूप से शोषण करना है
और इसके अलावा इन लोगों के समूह को धार्मिकता से जोड़ना गलत है क्योंकि इससे उनके प्रति और ज्यादा घृणा उत्पन्न हो जाती है,
हालांकि पहले के समय में डॉक्टरों द्वारा समलैंगिकों का उपचार यह मानकर किया जाता था कि यह कोई मानसिक रोग है लेकिन अब बहुत से देशों में समलैंगिकता का इलाज नहीं किया जाता है क्योंकि वे मान चुके हैं कि यह कोई रोग नहीं है बल्कि जीवन की सच्चाई है जो प्राकृतिक है अर्थात प्रकृति से वह ऐसे ही है
हां यह बात है कि
ज़्यादातर लोगों को लगता है  समलैंगिक लोग किसी शारीरिक या मानसिक बीमारी से ग्रस्त होते हैं, जो उन्हें विपरीत सेक्स के साथ यौन सम्बन्ध बनाने से रोकती है
और उन्हें गलत नज़रिये से देखा जाता है और ऐसा केवल
इसलिए क्यूंकि वो समाज में मान्यता प्राप्त विषमलैंगिक
नीतियों में यकीन नहीं करते और ना ही उनको मानते हैं,
साथ ही लोगों के मन में
समलैंगिक लोगो के बारे में यह आम धारणा है कि उनकी
जीवनशैली अलग होती है, साथ ही उनके गुणसूत्रों की संरचना भी अलग होती है,
लेकिन यह बात ध्यान देने योग्य है कि कुछ चीजें इंसानों के नियंत्रण से बाहर की होती हैं जिन्हें प्राकृतिक कहते हैं, जैसे नस्ल, त्वचा का रंग आदि।
ऐसे में उन चीज़ों को बदलने की मांग करना बेवकूफी या
उस चीज़ के साथ नाइंसाफी होती है ठीक इसी
प्रकार समलैंगिकता भी प्राकृतिक है यह कोई बीमारी नहीं है
बल्कि इसे बदलने की सोच रखना बीमारी है जिसका इलाज नहीं किया जा सकता, और इसके इलाज की जरूरत भी नहीं है क्यूंकि समलैंगिकता कोई बीमारी नहीं है,
हालांकि समलैंगिकता कुछ समय पहले भारत में प्रतिबंधित थी अर्थात समलिंगी होना भारत में अपराध के बराबर था भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत समान लिंग के लोगों के साथ यौन संबंध बनाना असंवैधानिक था
2 जुलाई 2009 को, दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह सहमतिजताई कि समलैंगिक वयस्कों के बीच सेक्स संबंध एकअसंवैधानिक प्रावधान है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने 11दिसंबर 2013 को इस फैसले को खारिज कर दिया था
हालांकि, 6 सितम्बर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय
पर पुनर्विचार करते हुए उनकी यौन प्राथमिकताओं की
सुरक्षा पर सहमति जताई है,
अतः कुछ चीजें जिस पर हमारा वश नहीं चलता यह वही है इसलिए इसको कोई बीमारी या ग़लत नजरिए से देखने के बजाय अपनी सोच में बदलाव करें क्योंकि कुछ चीजें व्यक्ति के जन्म के साथ उत्पन होती है या कहूं कुदरत की देन होती है माना वो और उनकी प्रणाली भिन्न है लेकिन वह कोई बीमारी नही बल्कि उनमें व्याप्त एक जन्मजात स्थिति है जिसका इलाज कहीं भी संभव नहीं है।

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