Anxiety Attack mein Kya Hota hai? - एंग्जाइटी अटैक में क्या होता है?

एंग्जाइटी अटैक में क्या होता है?



 बात करें एंग्जाइटी की तो यह एक परेशानी है जो कि मानसिक स्तर पर मनुष्य को प्रभावित करता है। रोगी को हर वक्त भय, चिंता, नकारात्मता से घिरा होना महसूस होता है। इसका सही इलाज़ न हो तो परिस्थिति गंभीर हो सकती है। मानसिक स्वास्थ्य का संबंध हमारे मस्तिष्क से होता है। मस्तिष्क एक ऐसा जटिल अंग है जो अन्य अंगों की तुलना में ज्यादा परिपक्व होता है। इसका 'स्वास्थ्य' निश्चय ही हमारे व्यक्तित्व में गहरा प्रभाव डालता है। हमारे शरीर की कार्य करने की क्षमता इस पर निर्भर करती है। मानसिक परेशानी  हमारे अंदर भय व चिंता को जन्म देती है जिसका परिणाम नियमित 'एंग्जाइटी' अटैक का आना हो सकता है।


Anxiety Attack mein Kya Hota hai? - एंग्जाइटी अटैक में क्या होता है?



लोग अक्सर सोचते हैं कि क्या सामान्य चिंता या परेशानी 'एंग्जाइटी' अटैक को निमंत्रण दे सकती है? कैसे समझें कि सामान्य बेचैनी और एंग्जाइटी अटैक के बीच का फर्क? अगर आप भी इन प्रश्नों से जूझ रहे हैं तो इस आर्टिकल की मदद से हम इनका उत्तर जानने की कोशिश करेंगे।


आइए एक नज़र कुछ लक्षणों पर जो एंग्जाइटी अटैक की ओर इशारा करते हैं और बिन चेतावनी ही आ जाते हैं  :

* मांस पेशियों में तनाव का होना भी एंग्जाइटी की ओर इशारा कर सकता है। 

* हाथ पैर का ठंडा पड़ना।

* शारीरिक कमजोरी ।

* पेट में हलचल का होना।

* यादाश्त कमज़ोर होना ।

*छाती में खिंचाव लगना है।

*अनावश्यक आग्रह करने की आदत।

* अचानक धड़कन का बढ़ना।

* सांस का फूलना।

*दिल का दौरा पड़ने जैसा महसूस होना।

* पसीने छूटना।


चिकित्सकों के मुताबिक एंग्जाइटी अटैक में अचानक भय जैसा महसूस होने लगता है और इससे गंभीर शारीरिक प्रतिक्रियाओं को भी महसूस किया जाता है चाहे असल में आसपास कोई खतरा हो या ना हो। ये अटैक विभिन्न प्रकार के भी हो सकते हैं जैसे कि अचानक या अप्रत्याशित रूप से बिना किसी संकेत के आनेवाला अटैक जो कि परिस्थिति से जुड़ा न हो। दूसरा प्रकार का अटैक वो होता है जिसमें किसी स्थिति, व्यक्ति या वस्तु के कारण असहज़ता होती है। यह ज़रूरी नहीं कि यह अटैक उस परिस्थिति या वज़ह के तुरंत बाद हो। उदाहरण स्वरूप उस स्थिति से संपर्क में आने के आधे घंटे बाद भी अटैक्स शुरू हो सकते हैं। 


भारत में बात करें तो महानगरों में 15.20% लोग एंग्जाइटी के शिकार हैं तो जाहिर है कि एंग्जाइटी अटैक आम चिंता या भय से बड़ी समस्या है।


'एंग्जाइटी अटैक' से जुड़े सामान्य तथ्य-

* चिंता सभी को होती है पर असामान्य तरीके से किसी बात पर चिंतित रहना भय को उत्पन्न करता है। 

* स्टडी के अनुसार अपर्याप्त नींद भी एंग्जाइटी पैदा करती है। नींद का पूरा न होना 86% रोग को निमंत्रण देता है। 

* किसी प्रियजन को खो देने से भी मानसिक स्थिति पर दुष्प्रभाव पड़ता है। एंग्जाइटी इस कारण से भी हो सकता है

* किसी प्रकार का फोबिया भी इस परेशानी को जन्म दे सकता है।

* विद्यार्थियों में परीक्षा परिणाम को लेकर भय को जन्म दे सकता है।

* भीड़ से होने वाली घबराहट भी एंग्जाइटी उत्पन्न करती है।

* कहा जाता है पुरूष के मुक़ाबले महिलाओं पर इसका ज्यादा असर होता है।


इसके मुख्य रूप इस प्रकार हैं:-

फोबिया यानि दुर्भीति

फोबिया मूलतः किसी चीज़ या व्यक्ति के प्रति मन में उत्पन्न अनावश्यक व अतार्किक भय होता है। उदाहरण के तौर पर देखें तो कुछ लोगों को पानी से भय होता है तो वह हाइड्रोफोबिक कहलाता है, जिसे भीड़ का भय होता है उसे एगोराफोबिक कहा जाता है। 

फोबिया से ग्रसित लोगों को चक्कर आदि आने लगते हैं। इनमें नर्वस होने की भी आदत होती है। इसके पीछे के कारणों कोई ट्रॉमा और हेरिडिटरी (अनुवांशिक) कारण भी हो सकता है। कुछ मेडिकल परेशानियों का इलाज़ करवा रहे लोग भी फोबिया से ग्रसित हो सकते हैं। डिप्रेशन भी फोबिया का एक कारक हो सकता है।

फोबिया का असर काफी तकलीफदेह भी हो सकता है। रोगी कभी-कभी उचित प्रतिक्रिया भी नहीं दे सकता है। 



दुर्भीति में जिन चीज़ों या व्यक्ति से भय लगता है वह वास्तविकता में भयानक नहीं होते हैं।


सोशल एंग्जाइटी 

इस प्रकार की एंग्जाइटी सोशल या सामाजिक भय के रूप में जानी जाती है। इस तरह की समस्या से जूझने वाले व्यक्ति को अपमान का भय सताता है। लोग आलोचना के डर में रहते हैं। उनमें आत्मसम्मान की कमी होती है। दिमाग में हमेशा यही चलता है कि अजनबी या हमारे संबंधी क्या सोचेंगे! इससे जूझने वालों को कोई प्रस्तुति देने में भय लगता है। अक्सर ध्यान का केन्द्र बनने पर उन्हें परेशानी महसूस होती है, इससे उनमें व्याग्रता तीव्र हो जाती है।


इसके कुछ मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं:

  • पसीना आना ।
  • हकलाना।
  • कंपकपी ।
  • अति आत्मसजगता।
  • आँखें मिला कर बात करने में समस्या ।
  • बात-बात पर शर्मिंदगी का महसूस होना।


पैनिक डिसऑर्डर 

कुछ लोग हर बात में नकारात्मक तत्वों को अधिक तवज्जो देते हैं। छोटी-छोटी बातों से तुरंत ही तनावग्रस्त हो जाते हैं। उन्हें हर बात में एक खतरा नज़र आता है। रोगी को ऐसा महसूस होता है कि सामनेवाले को उसकी कद्र नहीं या वो उसे धोखा दे रहा है। इससे जूझने वाले लोगों को दूसरों से घुलना-मिलना पसंद नहीं होता है।


सामान्यीकृत चिंता विकार

यह एक विकार है जहाँ तनाव या चिंता बेकाबू या तर्क हीन होती है।जब तनाव, उदासी व नकारात्मता मन पर हावी हो जाती है और सोचने-समझने की क्षमता क्षीण हो जाती है तो इस मानसिक रोग का आगमन होता है। जब यह स्थिति लंबे समय तक बनी रहती है तो स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालती है। जब यह स्थिति चरमसीमा पर पहुँचती है तो इससे जूझने वाला व्यक्ति आत्महत्या संबंधी विचार भी मन में लाने लगता है। हर साल आत्महत्या की वजह से 80 हज़ार लोग जान गंवा देते हैं। यह जानकारी दुख देने वाली है कि आत्महत्या 15 से 29 वर्षीय किशोरों की मौत का दूसरा मुख्य कारण है।

हाल के एक रिसर्च की माने ती डिप्रेशन में शरीर में दर्द भी बहुत रहता है। 


इसका आम असर कुछ प्रकार है-

बेचैनी

एकाग्रता में परेशानी 

नींद में कठिनाई 

मांसपेशियों में तनाव

घबराहट 

संकट का अनुभव 

सोने में परेशानी 

सुन्नपन या झुनझुनी महसूस होना।


रोगी में नकारात्मक परिस्थिति से निपटने की क्षमता को विकसित करने की कोशिश होनी चाहिए। उनकी दिनचर्या में कुछ परिवर्तन लाए जा सकते हैं,जैसे कि:

-योगा व व्यायामों को आदत में शामिल करना।

- संगीत सुनना।

-ब्रेक लेना।

- सेल्फ केयर को समय देना।

- ब्रेनबूस्टर वस्तुओं को भोजन में शामिल करना।

- मन की बातें बांटना।

- रूचि को बढ़ावा देना या कोई नई कला को सीखना।

- अकेलेपन से दूर रहना।

- तनावपूर्ण स्थिति होने पर दोस्तों या भरोसेमंद से सलाह लेना।

- व्यवहार या हाव भाव में एक हफ्ते से अधिक उतार-चढ़ाव होने पर चिकित्सक से परामर्श लेने की कोशिश।



- दिनचर्या में बदलाव।

- समय पर सोना।


एंग्जाइटी की समस्या इस भागदौड़ भरी में होना एक आम बात है पर मनोचिकित्सा या परामर्श लेना कभी भी संकोच का विषय नहीं होना चाहिए। कई बार अपने आसपास इस परेशानी से जुझते लोगों की तकलीफ समझ नहीं पाते। ऐसे लोग कट कर जीने लगते हैं।अतः यह आवश्यक है कि मानसिक स्वास्थ्य को एक गंभीर  विषय के रूप में लिया जाए। यह सामाजिक स्तर पर भी महत्वपूर्ण है। जागरूकता ,जीवनशैली में छोटे-बड़े बदलाव व उचित चिकित्सा एंग्जाइटी से जुड़े दुष्प्रभाव को काफ़ी हद तक दूर रख सकते हैं। रोगी के साथ-साथ उससे जुड़े लोगों को भी इन बातों का ख्याल करना चाहिए।


एंग्जाइटी विनाशकारी हो सकती है इसलिए हमेशा अपने आप को और अपने प्रियजनों को जांच में रखना सुनिश्चित करें और यदि आवश्यक हो तो डॉक्टर से संपर्क करने में संकोच न करें।



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